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किसान-सरकार:शुभ संवाद

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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जैसी कि आशा थी,सरकार और किसानों की बातचीत थोड़ी आगे जरुर बढ़ी है। दोनों पहले से नरम तो पड़े हैं। इस आंशिक सफलता के लिए जितने किसान नेता बधाई के पात्र हैं,उतनी ही सराहना के पात्र कृषि मंत्री और व्यापार-उद्योग मंत्री भी हैं। बातचीत के बाद २ मुद्दों पर दोनों पक्षों की सहमति हुई। सरकार ने माना कि उसके वायु-प्रदूषण अध्यादेश और बिजली के प्रस्तावित कानून में वह संशोधन कर लेगी! अब किसानों पर वह कानून नहीं लागू होगा,जिसके तहत पराली जलाने पर उन्हें ५ साल की सजा या १ करोड़ रु. का जुर्माना भी देना पड़ सकता था। इसी प्रकार बिजली के बिल में मिलनेवाली रियायतें भी किसानों को मिलती रहेंगी। इन दोनों रियायतों से ४१ किसान नेता इतने खुश थे कि उन्होंने मंत्रियों को अपना लाया हुआ भोजन करवाया और मंत्रियों की चाय भी स्वीकार की। याद कीजिए कि पिछली बैठकों में किसानों ने सरकारी आतिथ्य को अस्वीकार कर दिया था। अब कृषि मंत्री का कहना है कि किसानों की ५० प्रतिशत मांगें तो स्वीकार हो गई हैं। यह आशावादी बयान कुछ किसान नेताओं को स्वीकार नहीं है। उनका मानना है कि ये तो छोटे-मोटे मसले थे। असली मामला तो यह है कि तीनों कृषि-कानून वापस हों और न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी रुप दिया जाए। किसानों के इस आग्रह को मंत्रियों ने रद्द नहीं किया है। यह उनकी परिपक्वता का सूचक है। वे संवाद की खिड़कियां खुली रखना चाहते हैं। वे इन सुझावों पर गौर करने के लिए एक संयुक्त समिति बनाने को भी तैयार हैं। अब सरकार और किसान नेताओं के बीच पुनः संवाद होगा। इस संवाद की भूमिका भी अच्छे ढंग से तैयार हो रही है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने किसानों के घावों पर गहरा मरहम लगा दिया है। उन्होंने भारतीय किसानों को विदेशी एजेंट,आतंकवादी या खालिस्तानी कहकर बदनाम करने की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने सिख बहादुरों द्वारा देश की रक्षा के लिए किए जा रहे बलिदानों को भी याद किया। कोरोना के संकट-काल में कृषि-उत्पादन की श्रेष्ठता का भी बखान उन्होंने किया, लेकिन यह दुखद ही कि कुछ विघ्नसंतोषी किसानों ने लगभग १६०० मोबाइल टाॅवर तोड़ दिए हैं। वे अंबानी को सबक सिखाना चाहते हैं, लेकिन ऐसा करके अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। भारतीय किसानों के अपूर्व और अहिंसक सत्याग्रह को वे कलंकित कर रहे हैं।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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