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आखिर सत्ता की खातिर…

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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और आखिर मध्यप्रदेश में भी गुटबाजी में उलझी कांग्रेस के सामने सत्ता की चाशनी में पूर्व सांसद-मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ऐसी डुबकी मारी कि,कमल नाथ की सरकार बे-नाथ हो गई,तो फिर से शिवराज सिंह यानी कमल को सत्ता मिलने के प्रबल आसार हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने सवा साल ही हुआ है,पर लगभग शुरु से ही इसकी अस्थिरता की चर्चा चल रही थी,जिसमें कांग्रेस ही नहीं भाजपा का भी बड़ा हाथ है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को सबसे बड़ा दल होकर भी मप्र में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। भाजपा की अपेक्षा कांग्रेस को सीटें तो ज्यादा मिली,पर लेकिन सत्तारुढ़ भाजपा को मत ज्यादा मिले। प्रदेश में इस चुनाव से कांग्रेस को ११४ सीटें मिलीं,और भाजपा को १०७ पर रुकना पड़ा। लंबे वनवास बनाम यहां खींचतान के बाद कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ ने अंततः छोटे-मोटे दलों एवं निर्दलीय को मिलाकर कांग्रेस की सरकार बना ली,यानी नाथ तो बन गए पर तब से ही महाराज श्री सिंधिया को एक तरफ रखा गया। कुछ समय पहले इनके समर्थकों ने इनको प्रदेश का संगठन सौंपने की मांग उठाई,पर वरिष्ठ नेता कमल नाथ ने इसे भी टाल या दिल्ली से टलवा दिया। फिर उप-मुख्यमंत्री और अंत में राज्यसभा में भेजे जाने की सहमति तक अनेक उठापटक हुई, जिसका नतीजा सामने है।
अभी प्रदेश विधानसभा में कुल २३० में २ सीट खाली हैं। २२८ सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस की सरकार यूँ तो बेहतर चल रही थी,और जनता से कोई नाराजगी भी नहीं थी, किन्तु मुख्यमंत्री कमल नाथ यानी कांग्रेस सरकार ने कुछ ऐसी कार्रवाई भी की,जो भाजपाईयों के साथ ही जमे हुए कांग्रेसियों को भी अंदर तक साल गई। ऐसे में गैर-कांग्रेसी सदस्य भी हिलने-डुलने लगे,और विरोध का खुला श्रीगणेश करते हुए १कांग्रेसी विधायक ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। अब तक भी नाथ समझ नहीं पाए कि,श्री सिंधिया और भाजपा ने कितनी जमावट की है। यानी कुछ ने सरकार गिराने तो कुछ ने बचाने में अपनी मेहनत की, जिसका प्रमाण कुछ विधायकों को गुड़गांव और कुछ को बेंगलूर में घेरना रहा,पर इस वक़्त तक भी नाराज हुए श्री सिंधिया के लिए मुख्यमंत्री नाथ ने आगे होकर ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे उनको राज्यसभा के लिए ख़ुद को भेजे जाने का भरोसा रहता।
ताजा हालातों में बात करें तो मप्र में राज्यसभा के लिए ३ सदस्य चुने जाने हैं,पर कम विधायक होने से एक-एक सदस्य दोनों दल चुन लेंगे,लेकिन तीसरे सदस्य को चुनने के लिए कांग्रेस और भाजपा भी जोड़-तोड़ कर रही थी। पहले कांग्रेस से इस्तीफा और भाजपा में आने के बाद मध्यप्रदेश की राजनीति भी आगामी समय में और कारनामे दिखाएगी,यह तय है।
कांग्रेस एवं भाजपा की इस गुटीय राजनीति ने दोनों दलों को चेतावनी दी है,कि पुराने और युवा नेतृत्व का ध्यान रखें,सोचें।
प्रदेश में सरकार गिरेगी,या क्या होगा,यह तो दूजी बात है,पर अब सत्ता यानी सेवा के नाम पर परम्परा,प्रतिष्ठा,दल,विचारधारा,आस्था सब व्यक्तिगत हो गए हैं। ख़ुद का मान बनाए रखने मतलब राजनीति-सत्ता प्राप्त करने के लिए कोई भी राजनेता कोई भी कदम उठा सकता है। वह कितना नीचे जाएगा,या कितनी दूर तक सोचेगा,कहना कठिन है। अब श्री सिंधिया या मूल दल से दूसरे दल में जाने वाले ऐसे नेता संगठन को कोसें या सराहें,इससे कुछ नहीं होगा। कांग्रेस सहित भाजपा को भी गहन चिंतन करना पड़ेगा, क्योंकि कल को कोई भाजपा से भी जा सकता है। भाजपा की संस्थापक रही राजमाता के पोते श्री सिंधिया का अभी तो पलक पावड़े से स्वागत हो रहा है,पर संगठन में भविष्य तो सत्ता से ही तय होगा। हालांकि,उम्मीद की जाए कि,माधवराव सिंधिया के इस श्रीमंत की चमकदार छवि से प्रदेश और देश में भाजपा को अच्छा लाभ मिलेगा।

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