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पागल हूँ…

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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किसी ने कहा-‘पागल मत बनो’,
मैंने कहा-‘तुम हो ही ऐसे कि
मुझे पागल बनना पड़ता है
हाँ, मैं पागल हूँ,
दुनिया में कौन पागल नहीं है ?
कोई बता सकता है क्या ?
कोई नहीं बता पाएगा।

दुनिया में दो तरह के पागल होते हैं,
पागल का विच्छेद, पा+गल= पागल
एक जो पाने की खुशी में गल जाता,
दूसरा पाने के लिए है गलना चाहता
मैं पाकर पागल हुआ हूँ प्रभु को,
नहीं ये कहना गलत हो सकता है ?
किसी को पाने के लिए पागल हूँ।

सारी दुनिया तो कुछ न कुछ, पाने के लिए पागल होती है
किसी को धन चाहिए,
कोई पैसे के लिए पागल होता है
किसी को सत्ता चाहिए,
कुर्सी के लिए पागल होता है
कोई रूप का पागल होता है,
शराबी, शराब के लिए पागल होता है
कवि कविता के लिए पागल होता है,
आप भी किसी के लिए पागल हैं
मैं तो पागल हूँ ही।

अच्छा लगता है,
जब कोई ‘पागल’ कहता है
आप भी पागल बनिए,
क्योंकि, एक पागल का दर्द
एक पागल ही समझ सकता है।
‘दीनेश’ पागल का दर्द पागल जाने॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।