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गाँव से

कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना ‘गिरीश’
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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निष्ठुरपुर गाँव में चार-पांच दिन से माहौल बहुत गर्म था। पंचायत भवन में गर्मी कुछ ज्यादा थी,यह आस-पास के चार-पांच गाँव की संयुक्त पंचायत थी। बार-बार सरपंच पर पंचायत बुलाने का दबाव था। अंततः उन्होंने आज पंचायत बुला ही ली,मुद्दा था-महानगर से विस्थापितों का आगमन।
पंचायत का निर्धारित समय आया तो देखने वाला दृश्य था। जो कभी ना आए थे वे ग्रामीण भी आए थे,पञ्च तो पूरे थे ही। तिल रखने को भी जगह नहीं थी। सरपंच दुर्जनसिंह ने सभा को संबोधित किया-“भाइयों,आज के मुद्दों जेसो मुद्दों पेले जा पंचात में कबहूँ नई उठो है | सबै सोच समझ के बिचार करियो। हमरे सची भाई मति राम आज को मंशा पत्र पढेंगे,जाय ध्यान से सुनियो।”
भाई मति राम उठ खड़े हुए,-“भाइयों तुमरे काजे पता है,शेहरन कोइ नऊ ‘कोरोना’ महामारी आई है। लाखन में फेल रइ हे ते हजारन में मर रये हैं। हजार-हजार की तादाद मजदूर शहरन को छोड़ गाँव आ रये हैं। अब हमें सोचनो है हमें करनो का है ?
दुर्जन-“अब पंचों बोलो तुमरी का राय है ?”
एकता पुर के पञ्च ने कहा-“अब बा में सोचनो का हे,अपने लोग इते नई आंगे तो किते जांगे। उनको गाँव हे आन दो, पूरी नई मिल्हे आधी मिल्हे साथ तो रेंगे। “
धान्दली पुर के पञ्च ने कहा-“भैया अपने किते,जबे परेशानी हती,कीचड खप्पन हती,खाबे को नई हतो,बिने सड़के बिजली चैये हती,शहरन को चस्को हतो महलन के खाब हते,बे गाँव छोड़ गए। अब इते का लेन आ रये हैं।”
जुझारपुर के पञ्च ने कहा-“हओ सईं तो के रये,सरपंच जी। बिने इते की तप्लीक से छुटकारो चइये थो ना। इते तो रोजगार थो नई,उते रोजगार काजे गए हते। उते की चुपड़ी पे लार टपक रई हती ना। अब का भओ जे गाँव काए याद आ गओ ? हमरी दो कमरा के झुपडिया में घुसेंगे।”
धाकड़ बोला-“ओरका,रेडुआ टी बी पे आ रो थो,छे-छे फुट दूर रओ। भैया हमरी हमसे नई अबर रइ बिने किते छे फुट की सोसल डिटटेंटिन किते देंगे ?
मति राम चार किताब पढ़ो हतो जई से सची बनगओ,बोलो-भाइयों,वो तो सईं है कबे अखबार पढ़ो काय ? जा बिमारी में सबै छे फुट दूर रेने पढ़े एक-दूजे से। अपनी तो झोंपडिया लेलो चाय सरपंच की अटारी जे छे फुट दुरी कैसन रखिहें,मो पे कपड़ो बंधे को पड़े सो अलग। जे बे शहर से बीमारी ले आये तो हम का करहें ? इते तो अस्पताल का हे टपरो हे टपरो,न डाक्टर न नर्स न दवाई। हमरो का होयगो ?”
खंडितपुर का पंच बोला-“बे हमरो खेत रोजगार फसल सबई कछु बाँट ले हें,हम कहें बिने फोन कर दो उतई रहें।”
सब एक-दूसरे की हाँ में हाँ मिला रहे थे। भलो राम अच्छे सिंह कहने लगे,-“आन दो ना अपने ही लोग तो है,बाँट बूट के गुजारो केल्लेहें,” नक्कारखाने में तूती की आवाज़, उनकी आवाज़ शोर में दब गई।
सरपंच दुर्जनसिंह ने फैसला सुनाया,-“सबई लोग कान खोल के सुन लो,गाँव को घेरो बना लो,हमरे काजे माँमारी (महामारी) नहीं चइय्ये। बे जिते खुसी से गए उतई खुसी से रहें। थाने-तेसील में रपट लिखा दो, ‘कोरोना’ नई चाय्ये। जा सुरसाए जान दो,फिर आइय्यो जा गाँव।”

परिचय-कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना का साहित्यिक उपनाम ‘गिरीश’ है। २३ मार्च १९४५ को आपका जन्म जन्म भोपाल (मप्र) में हुआ,तथा वर्तमान में स्थाई रुप से यहीं बसे हुए हैं। हिन्दी सहित अंग्रेजी (वाचाल:पंजाबी उर्दू)भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. सक्सेना ने बी.एस-सी.,एम.बी.बी.एस.,एम.एच.ए.,एम. बी.ए.,पी.जी.डी.एम.एल.एस. की शिक्षा हासिल की है। आपका कार्यक्षेत्र-चिकित्सक, अस्पताल प्रबंध,विधि चिकित्सा सलाहकार एवं पूर्व सैनिक(सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी) का है। सामाजिक गतिविधि में आप साहित्य -समाजसेवा में सक्रिय हैं। लेखन विधा-लेख, कविता,कहानी,लघुकथा आदि हैं।प्रकाशन में ‘कामयाब’,’सफरनामा’, ‘प्रतीक्षालय'(काव्य) तथा चाणक्य के दांत(लघुकथा संग्रह)आपके नाम हैं। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं। आपने त्रिमासिक द्विभाषी पत्रिका का बारह वर्ष सस्वामित्व-सम्पादन एवं प्रकाशन किया है। आपको लघुकथा भूषण,लघुकथाश्री(देहली),क्षितिज सम्मान (इंदौर)लघुकथा गौरव (होशंगाबाद)सम्मान प्राप्त हुआ है। ब्लॉग पर भी सक्रिय ‘गिरीश’ की विशेष उपलब्धि ३५ वर्ष की सगर्व सैन्य सेवा(रुग्ण सेवा का पुण्य समर्पण) है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य-समाजसेवा तो सब ही करते हैं,मेरा उद्देश्य है मन की उत्तंग तरंगों पर दुनिया को लोगों के मन तक पहुंचाना तथा मन से मन का तारतम्य बैठाना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद, आचार्य चतुर सेन हैं तो प्रेरणापुंज-मन की उदात्त उमंग है। विशेषज्ञता-सविनय है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“देश धरती का टुकड़ा नहीं,बंटे हुए लोगों की भीड़ नहीं,अपितु समग्र समर्पित जनमानस समूह का पर्याय है। क्लिष्ट संस्कृतनिष्ठ भाषा को हिन्दी नहीं कहा जा सकता। हिन्दी जनसामान्य के पढ़ने,समझने तथा बोलने की भाषा है,जिसमें ठूंस कर नहीं अपितु भाषा विन्यासानुचित एवं समावेशित उर्दू अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग वर्जित न हो।”

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