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मूलाधार स्थित विघ्नहर्ता गणेशजी

डॉ.पूर्णिमा मंडलोई
इंदौर(मध्यप्रदेश)

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श्री गणेश चतुर्थी स्पर्धा विशेष…..

हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं-मूलाधार, स्वाधिष्ठान,मणिपुर,अनाहत,विशुद्ध,आज्ञा और सहस्रार चक्र। इनमें से मूलाधार सबसे पहला चक्र है। मूलाधार चक्र का स्थान `रीढ़ की हड्डी के एकदम निचले हिस्से में होता है। सामान्यतः हमारी सारी ऊर्जा मूलाधार चक्र पर स्थित होती है। ध्यान के माध्यम से मूलाधार स्थित अपनी उर्जा को सहस्रार तक लाया जा सकता है,जो भगवान ‘श्री गणेश’ की आराधना से संभव होता है,क्योंकि भगवान ‘गणेश’ पृथ्वी तत्व के देवता हैं। मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्व का ही पहला चक्र है। इसी मूलाधार चक्र में ‘श्री गणेश जी’ नित्य स्थित रहते हैं और इसी में इच्छा,क्रिया और ज्ञान तीनों शक्तियां निहित होती है। योगीजन नित्य गणपति को ध्यान कर मूलाधार चक्र को जागृत करते हैं,जिससे यह तीनों शक्तियां अन्य ६ चक्रों को भेदकर सहस्त्रार तक आकर परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से एक रूप हो जाती है।
मूलाधार चक्र अवचेतन मन में छिपी हुई अनंत इच्छाओं का प्रतीक है। इच्छा मन का सरल स्वभाव होता है। इच्छा और मन के भेद को समझने के लिए विवेक होना आवश्यक है। विवेक हमें बुद्धि से मिलता है,और बुद्धि के स्वामी ‘भगवान गणेश’ हैं। किसी भी कार्य को करने के लिए,पथ में आगे बढ़ने के लिए, सही-गलत का निर्णय करने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है। इसके लिए मूलाधार चक्र में स्थित भगवान ‘श्री गणेश जी’ का ध्यान करें और मूलाधार चक्र को जागृत करें।
अक्सर बहुत से लोग अत्यधिक चिंतित रहते हैं। वह मर्यादा विहीन कार्यों में लगे रहते हैं। शंकालु प्रवृत्ति के होते हैं,जिससे अत्यंत नजदीक के आपसी रिश्ते बिगाड़ लेते हैं और बाद में अनेक समस्याओं में घिरते चले जाते हैं। इस तरह उनकी चेतना,बुद्धि और सभी शक्तियां क्षीण हो जाती है एवं उनका पूरा मानसिक संतुलन बिगाड़ देती है। ऐसी स्थिति में उलझ जाने पर उनका मूलाधार चक्र दुर्बल हो जाता है। इसका प्रभाव अन्य चक्रों पर भी पड़ता है,क्योंकि ‘गणपति’ मूलाधार चक्र में रहकर सभी चक्रों को जागृत कर मनुष्य को चैतन्य अवस्था में लाते हैं। ‘गणेश तत्व’ खराब होने पर अन्य कोई भी चक्र ठीक से कार्य नहीं कर सकते, क्योंकि ‘श्री गणेश’ की अनुमति के बिना बाकी चक्रों के देवता भी हमें आशीर्वाद नहीं दे पाते। इसी कारण सर्वप्रथम मूलाधार चक्र को स्वच्छ एवं प्रबल करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। इसके लिए हमेशा रीढ़ की हड्डी को सीधा करके बैठना चाहिए। अपने चित्त को मूलाधार चक्र पर रख कर ‘गणपति’ का ध्यान करना चाहिए,जिससे बिना विघ्न के हमारे सभी कार्य सफल होंगे।

मूलाधार चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता,निर्भीकता और आनंद का भाव जागृत होता है। वह सदैव चैतन्य अवस्था में रहकर अपनी बुद्धि से सभी कार्य सुगमता से कर लेता है। जागृत मूलाधार चक्र विवेक,परमात्मा के प्रति समर्पण शक्ति, अबोधिता,मानसिक संतुलन एवं पावित्र्य दायक होता है। जागरण मूलाधार वाला व्यक्ति सबके लिए मंगलमय और देवी आनंद को लाने वाला होता है। श्री गणेशाय नमः।

परिचय–डॉ.पूर्णिमा मण्डलोई का जन्म १० जून १९६७ को हुआ है। आपने एम.एस.सी.(प्राणी शास्त्र),एम.ए.(हिन्दी) व एम.एड. के बाद पी-एच. डी. की उपाधि(शिक्षा) प्राप्त की है। डॉ. मण्डलोई मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित सुखलिया में निवासरत हैं। आपने १९९२ से शिक्षा विभाग में सतत अध्यापन कार्य करते हुए विद्यार्थियों को पाठय सहगामी गतिविधियों में मार्गदर्शन देकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर सफलता दिलाई है। विज्ञान विषय पर अनेक कार्यशाला-स्पर्धाओं में सहभागिता करके पुरस्कार प्राप्त किए हैं। २०१० में राज्य विज्ञान शिक्षा संस्थान (जबलपुर) एवं मध्यप्रदेश विज्ञान परिषद(भोपाल) द्वारा विज्ञान नवाचार पुरस्कार एवं २५ हजार की राशि से आपको सम्मानित किया गया हैl वर्तमान में आप सरकारी विद्यालय में व्याख्याता के रुप में सेवारत हैंl कई वर्ष से लेखन कार्य के चलते विद्यालय सहित अन्य तथा शोध संबधी पत्र-पत्रिकाओं में लेख एवं कविता प्रकाशन जारी है। लेखनी का उद्देश्य लेखन कार्य से समाज में जन-जन तक अपनी बात को पहुंचाकर परिवर्तन लाना है।

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