नीलू चौधरी
बेगूसराय (बिहार)
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मानते हैं दु:ख दिया है साल यह,
पर करें इसको विदा हम किस तरह।
जब महीनों का हमारा साथ है,
अलविदा कहना व्यथा की बात है।
दर्द हो या सुख सभी साझा किया,
हाल अपना सब बयाँ इससे किया।
क्या कमी ही थी हमारे नेह में ?
या पराया-सा लगा इस गेह में ?
जी रहे हैं ख़ौफ़ में किससे कहें ?
क्यों मिली इतनी सजा,कैसे सहें ?
भूलना इंसान की आदत बनी,
पर क्षमा करना कभी भूलें नहीं।
भूल कर सारे गिले-शिकवे मिटा,
आ गले मिल साल को कर दें विदा।
आ गई बेला विदा की आँख नम,
भव्य आयोजन करें हो लाख गम॥