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चाँद

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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चाँद से चेहरे पे हैं गेसू की काली बदलियाँ,
रुख़ से जो पर्दा उठे तो कौंधती हैं बिजलियाँ।

देख कर के चन्द्रमुख ये चाँदनी शरमा गयी,
दिल में मेरे जाने क्यों बढ़ने लगी बेताबियाँ।

ऐ सुधाकर तू भी मेरे चाँद से बढ़कर नहीं,
देख मेरे चाँद को होती सदा सरगोशियाँ।

मेरे दिल का चाँद ही मेरी ये जीवन डोर है,
मुझ पे रहती है सदा तारी यहाँ मदहोशियाँ।

गूँजती रहती तरन्नुम में ग़ज़ल रूबाइयाँ,
मुझको भाती हैं नहीं यूँ बज़्म में खामोशियाँ।

एक पल आँखों से ओझल हो नहीं मंजूर ये,
काटने लगती हैं मुझको बेसबब तन्हाइयाँ।

कितना ही जल ऐ शशि मुझसे मेरे प्यार से,
तुमको हरसू ही मिलेंगी बस वही नाकामियाँ॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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