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समाज सुधार के लोकनायक रहे गुरु वल्लभ

ललित गर्ग
दिल्ली

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विश्व पटल पर कतिपय ऐसे विशिष्ट व्यक्तित्व अवतरित हुए हैं जिनके अवदानों से पूरा मानव समाज उपकृत हुआ है। ऐसे महापुरुषों की परम्परा में जैन धर्मगुरुओं एवं साधकों ने अध्यात्म को समृद्ध एवं शक्तिशाली बनाया है। उनमें एक नाम है युगवीर,क्रांतिकारी आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी का। वे बीसवीं सदी के शिखर आध्यात्मिक पुरुष थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है। जिन्होंने अपने त्याग,तपस्या,साहित्य-सृजन, जैन-संस्कृति-उद्धार के उपक्रमों से नया इतिहास बनाया है। समाजसुधारक एवं चैतन्य रश्मि के रूप में न केवल जैन समाज, बल्कि सम्पूर्ण अध्यात्म-जगत में सुनाम अर्जित किया है। राष्ट्रव्यापी स्तर पर उनका १५०वें जन्मोत्सव वर्ष आयोजित हुआ, जिसका समापन १६ नवम्बर २०२० को वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् नित्यानंद सूरीश्वरजी के सान्निध्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राजस्थान के जैतपुरा में १५१ इंच उत्तुंग धातु निर्मित ‘गुरु वल्लभ प्रतिमा’ (शांति की प्रतिमा) का लोकार्पण करके किया गया।
गुरु वल्लभ का नाम और काम कालजयी है। उन्होंने एक नवीन समाज निर्माण का प्रयत्न किया। एक धर्माचार्य के रूप में उन्होंने जो पवित्र और प्रेरक रेखाएं अंकित की,उनकी उपयोगिता,प्रासंगिकता एवं आहट युग-युगों तक समाज को दिशा-दर्शन करती रहेगी। वे ऋषि,देवर्षि, ब्रह्मर्षि एवं राजर्षि थे,जिन्होंने अपने पुरुषार्थ से अनेक तीर्थों की स्थापना की है। पिछली २ शताब्दियों में जैनधर्म को ऐसा महापुरुष नहीं मिला था। वह युग भारत के इतिहास में नव जागरण एवं नवनिर्माण का था। पढ़-लिखे लोगों में देशाभिमान जन्म लेने लगा था। यहीं से आधुनिक युग का प्रारंभ हुआ और इसी दौर में गुरु वल्लभ ने सरस्वती मंदिरों की स्थापना करके अभिनव क्रांति का सूत्रपात किया। आपका जीवन अथाह ऊर्जा,प्रेेरणा एवं जिजीविषा से संचालित तथा स्वप्रकाशी रहा। वह एक ऐसा प्रभापुंज,प्रकाशगृह था जिससे निकलने वाली एक-एक रश्मि का संस्पर्श जड़ में चेतना का संचार कर मानवता के समुख उपस्थित अंधेरों में उजालों का काम कर रही है।
आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी चमत्कारी संत थे। गुजरात के ऐतिहासिक नगर पाटण में प्राचीन एवं आधुनिक साहित्य के लिए ‘हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान भंडार’ की स्थापना की प्रेरणा देते हुए ऐसा प्रभावशाली और मार्मिक चित्र खींचा कि महिलाओं ने गहने उतार कर ढेर कर दिए। राजस्थान में बीकानेर में विजय वल्लभ के प्रवचन से यहां की रानी इतनी प्रभावित हुई कि उसने अपने बगीचे का नाम ‘विजय वल्लभ बाग’ रखा। गुरु वल्लभ का सामाजिक दृष्टिकोण सुधारवादी था। जिन रूढ़ियों से न तो कोई धर्म का लाभ होता है,न समाज का,जो केवल रूढ़ि बनकर रह गई हैं,जिनके पालन से किसी भी प्रकार का लाभ नहीं होता,उन्हें अस्वीकार करते थे।
महात्मा गांधी की स्वतंत्रता की ज्योति जल रही थी। स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग और विदेशी चीजों का विरोध जोरों पर था। उस समय विजय वल्लभ ने मलमल के कपड़े उतार फैंके और खुरदरी खादी के मोटे कपड़े परिधान करने प्रारंभ किए। कहना न होगा कि विजय वल्लभ की प्रेरणा से हजारों लोगों ने खादी पहनना चालू कर दिया था।
महामना मदन मोहन मालवीय और आचार्य विजय वल्लभ के बीच नैकट्य संबंध था। उस समय साम्प्रदायिक दंग हो रहे थे। विजय वल्लभ जी ने संकीर्ण साम्प्रदायिकता से उठकर स्नेह एवं सद्भाव के उपदेश दिए। उनके प्रवचन में हिन्दू,मुस्लिम,सिख आदि विविध धर्म के लोग समान रूप से आते रहते थे। लाहौर में जब उनका प्रवेश होने वाला था,उसके पहले दिन ही हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो गए। जिस दिन प्रवेश होने वाला था। उस दिन भी उसकी पुनरावृत्ति होने वाले थी। उसके लिए दोनों गुटों में जोरों से तैयारी हो रही थी। पर जैसे ही विजय वल्लभ का नगर प्रवेश हुआ और सार्वजनिक प्रवचन हुए तो वे आश्चर्यजनक रूप से गायब हो गया। जो कल एक दूसरे के खून के प्यासे थे,वे ही विजय वल्लभ के प्रवचन के बाद गले लगते हुए दिखाई दिए। कई मुस्लिम समाजों ने उन्हें अभिवंदन-पत्र भेंट दिए।
गुरु वल्लभ अपने समय के ऐसे महापुरुष थे,जिनकी गणना रमण महर्षि,रामकृष्ण परमहंस,स्वामी दयानंद आदि में होती हैं। उनके चमत्कारों का राज यही था कि उनमें आत्मविश्वास,संयम और चरित्र की प्रबल शक्ति थी। गुरु वल्लभ की प्रेरणा से देश में अनेक निर्माण कार्य हुए,मगर विशेष बात यह है कि वे मंदिरों,धर्मशालाओं, पाठशालाओं,छात्रावासों,चिकित्सालयों, मान-स्तम्भों के निर्माण के साथ-साथ, श्रावकों का भी उत्तम निर्माण कर करते रहे। कभी शिविरों के माध्यम से तो कभी अपने प्रवचनों के माध्यम से। आप उस कोटि के निष्पृह-संत थे जिसकी परिभाषा जैनाचार्यों के अतिरिक्त महान कवि एवं संत कबीरदासजी ने भी की है कि-साधु ऐसा चाहिए,जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहे,थोथा देइ उड़ाय॥
आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी ‘प्रवरसंत’ थे,आत्मसाधना में लीन, लोक-कल्याण के उन्नायक,सर्वश्रेष्ठ लोकनायक थे। उनकी दृष्टि में साहित्य-सृजन एक उत्कृष्ट तप एवं पवित्र अनुष्ठान था। दर्शन,धर्म,अध्यात्म,न्याय, गणित,भूगोल,खगोल,नीति,कर्मकाण्ड आदि विषयों पर उनका समान अधिकार था। आपके विद्वत् वात्सल्य की चर्चा तो यत्र-तत्र सर्वत्र थी किन्तु विद्वानों विशेषकर युवाओं के प्रति उनका सहज वात्सल्य तथा ज्ञान प्राप्ति की लालसा सुनने को मिली।
आज प्रधानमंत्री ने नारी शिक्षा को बल देने के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का उद्घोष दिया है,पर गुरु वल्लभ ने एक शताब्दी पूर्व ही इस तरह की अभिनव क्रांति का उद्घोष करते हुए समाज को जागृत किया था। गुरु वल्लभ के व्यक्तित्व में सजीवता थी और एक विशेष प्रकार की एकाग्रता। वातावरण के प्रति उनमें ग्रहणशीलता थी और दूसरे व्यक्तियों एवं समुदायों के प्रति संवेदनशीलता।
सचमुच आपकी जीवन-गाथा आश्चर्यों की वर्णमाला से आलोकित-गुंफित एक महालेख है। आपकी प्रेरणा से संचालित होने वाली प्रवृत्तियों में इतनी विविधता रही कि जनकल्याण के साथ-साथ संस्कृति उद्धार, शिक्षा,सेवा,प्रतिभा-सम्मान,साहित्य-सृजन के अनेक आयाम उद्घाटित हुए है। आपने देश में अहिंसा,शाकाहार,नशामुक्ति,नारी जागृति,रूढ़ि उन्मूलन एवं नैतिक मूल्यों के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। वे भौतिक वातावरण में अध्यात्म की लौ जलाकर उसे तेजस्वी बनाने का भगीरथ प्रयत्न करते हुए मोक्षगामी बने। आपका संपूर्ण जीवन साधना,समाधि,शिक्षा में क्रांति एवं सामाजिक उत्थान और मनुष्य के नैतिक जागरण का उत्कृष्ट नमूना कहा जा सकता है।

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