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सुखी जीवन

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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सुखी वही जीवन है जिसमें माँ-बापू का प्यार मिले,
उनका आशीर्वाद मिले और पत्नी की मनुहार मिले।
स्वर्ग वही घर जिसमें बेटी-बेटों की किलकारी हो,
घर के आँगन की बगिया में प्यारे-प्यारे फूल खिले।

संतोषी जीवन हो सारा नहीं कोई आपा-धापी,
खाने को दो रोटी हो बस खुशियों का संसार मिले।
आज्ञाकारी पुत्र-पुत्रियाँ,दादा-दादी का हो प्यार,
देश-गाँव में हो इज्जत और सामाजिक सत्कार मिले।

संस्कार बच्चों में हो और आपस में सहयोगी हों,
मितभाषी परिवार जने हों ऐसा घर परिवार मिले।
सुख-दु:ख में सब साथ खड़े हों लिए हाथ में हाथ सदा,
दया धर्म हो हर अंतस में शुद्ध सात्विक आहार मिले।

ध्यान रहे ईश्वर में हरदम करें सदा सत्कर्म सभी,
परोपकारी हों दयावान ये ईश्वर से उपहार मिले।
धूप-दीप से रहे महकता घर में लक्ष्मी वास करे ,
वही सुखी जीवन है यारों नहीं कभी संत्रास मिले॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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