रोहित मिश्र,
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
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उतारो जिस क्षेत्र में उसको,
निखर कर वो उभर आती है।
तप कर वो सोना-चाँदी,
ममता की मूरत कहलाती है।
समझो मत उसको अबला की मूरत,
शक्ति का रूप दिखलाती है।
हर बच्चे की पहली शिक्षा
उसके बिन,अधूरी समझी जाती है।
नारी बिन है नर अधूरे,
शक्ति बिन है,शिव अधूरे।
फिर भी मानव की आँखें घूरे,
अभी भी संभल जा,ओ जमूरे।
हर रुप में वो निखर कर खिल आती है,
कभी वो दुर्गा,तो कभी सीता बन जाती है।
हर क्षेत्र में वो अपना दबदबा दिखलाती है,
कभी वो ऐश्वर्या,तो कभी मिताली बन जाती है।
हर राष्ट्र में वो अहम भूमिका निभाती है,
कभी वो हसीना,तो कभी वो इंदिरा बन जाती है।
उतारो जिस क्षेत्र में उसको,
निखर कर वो उभर आती है॥