कुल पृष्ठ दर्शन : 202

मस्जिद में हिंदू विवाह अनुकरणीय

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
**********************************************************************
केरल के कायमकुलम कस्बे के मुसलमानों ने सांप्रदायिक सदभाव की ऐसी मिसाल कायम की है,जो शायद पूरी दुनिया में अद्वितीय है। उन्होंने अपनी मस्जिद में एक हिंदू जोड़े का विवाह करवाया। निकाह नहीं,विवाह! विवाह याने हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार मंत्र-पाठ,पूजा,हवन,द्वीप-प्रज्जवलन,मंगल-सूत्र आदि यह सब होते हुए आप यू-टयूब पर देख सकते हैं। शरत शशि और अंजु अशोक कुमार के इस विवाह में आये ४००० मेहमानों को शाकाहारी प्रीति-भोज भी करवाया गया। विवाह के बाद वर-वधू ने मस्जिद के इमाम रियासुद्दीन फैजी का आशीर्वाद भी लिया। चेरावल्ली मुस्लिम जमात कमेटी ने वर-वधु को १० सोने के सिक्के,२ लाख रु. नकद, टीवी,फ्रिज और फर्नीचर वगैरह भी भेंट में दिए। जमात के सचिव नजमुद्दीन वधू अंजू के पिता अशोक कुमार के मित्र थे और ४९ वर्ष की आयु में अचानक उनका निधन हो गया था। अशोक की पत्नी ने अपनी २४ साल की बेटी अंजू की शादी करवाने के लिए नजमुद्दीन से प्रार्थना की। उनकी अपनी आर्थिक स्थिति काफी नाजुक थी। नजमुद्दीन को मस्जिद कमेटी ने अपना पूरा समर्थन दे दिया। और फिर यह कमाल हो गया। इस काम ने यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे देश का मलयाली समाज कितना महान है,कितना दरियादिल है और उसमें कितनी इंसानियत है! ऐसे ही विवाह या अन्य संस्कार हमारे मंदिरों,गिरजों और गुरुद्वारों में क्यों नहीं हो सकते ? यदि ये भगवान के घर हैं तो फिर ये सबके लिए क्यों नहीं खुले हुए हैं ? यदि ईश्वर सबका पिता है तो पूरा मानव-समाज एक-दूसरे के रीति-रिवाजों का सम्मान क्यों नहीं कर सकता ?,लेकिन दुर्भाग्य यह है कि मजहब के नाम पर सदियों से निम्नतम कोटि की राजनीति होती रही है। धर्म-ध्वजियों या मजहबियों ने अपने बर्ताव से यह सिद्ध कर दिया है कि ईश्वर मनुष्यों का पिता नहीं है,मनुष्य ही ईश्वर के पिता हैं। मनुष्यों ने अपने-अपने मनपसंद भगवान घड़ लिये हैं और उन्हें वे अपने हिसाब से आपस में लड़ाते रहते हैं। उन्हें एक-दूसरे से ऊंचा-नीचा दिखाते रहते हैं। मस्जिद में हिंदू विवाह करवाकर मलयाली मुसलमानों ने सिद्ध कर दिया है कि वे पक्के मुसलमान तो है ही,पक्के भारतीय भी है। वे ऊंचे इंसान हैं,इसमें तो कोई शक है ही नहीं।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply