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आखिर कब तक ?

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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यह सुनकर छाती धधक उठती है कि,हमारे देश भारत वर्ष में जिसे ऋषि-मुनियों की धरती कहा जाता है,`धर्म नगरी` कहा जाता है,`बुद्ध भूमि` कहा जाता है,यहाँ कन्या,बिटिया और औरतों के साथ दुष्कर्म किया गया और उसके बाद उसे जलाकर मार डाला गया। घटना को अंजाम देने वाले दरिंदे सरकार के मेहमान बने रहेंगे। इस दुनिया में इससे बड़ा अपराध और पाप और कुछ भी नहीं है। समाज और सरकार से पूछता हूँ कि,आखिर कब तक हमारी बेटियों के साथ ऐसा होता रहेगा और हम मूक बनकर अंधी और बहरी सरकार से न्याय की गुहार लगाएंगे। हमें तो ऐसा लगता है कि न्याय की मांग कर हम किसी भेड़िए के सरदार से उसी गुट के सदस्य को दंडित करवाना चाहते हैं,जिससे उसकी रोजी-रोटी चलती है। अगर ऐसा नहीं होता तो न्याय मिलने में देरी नहीं होती। और आसरा न मिलने पर कोई इस तरह की गलती करने का दुस्साहस नहीं करता।
आज हम अपने देश में,अपने घर में ही असुरक्षित हैं। कब कौन,किसे और कहाँ मार दे,इसका कोई भरोसा नहीं है। एक घिनौनी बात यह भी है कि हम जिन्हें अपना बहुमूल्य मत देकर अपनी सुरक्षा और समाज तथा देश के विकास की बागडोर देते हैं,वो ऐसी निर्ममता पूर्ण घटनाओं में अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने लगते हैं। हमारे पैसे से वो अपनी सुरक्षा और सुविधाएँ बढ़ाने में जुट जाते हैं। आखिर कब तक हम इस प्रकार अपना शोषण और अपमान बर्दाश्त करेंगे ? हमारे देश को आजादी मिले दशकों बीत गए,लेकिन हमारी बेटियाँ आज तक खुद को आजाद महसूस नहीं करती हैं और यह बात सत्य भी है। मानव के रूप में हमारे बीच कुछ भेड़िए हैं,जो हर समय उन्हें नोंच खाने की फिराक में रहते हैं। वे हर रोज हमारी मासूमों की अस्मत से खेलते हैं और कानून के दलालों को रिश्वत के टुकड़े देकर बेफिक्र होकर जीते हैं। हर रोज एक `निर्भया` और `दिशा` उनकी हैवानियत का शिकार हो रही हैं। आखिर कब तक ये हैवान तांडव करते रहेंगे ?
वेद-पुराणों में कहा गया है कि,इस धरती पर जब-जब पाप बढ़ा है,तब-तब भगवान ने अवतार लिया है और पापियों का विनाश किया है। हे भगवान! आप तो सब कुछ जानते भी हैं,क्योंकि आपको सर्वव्यापी और सर्वज्ञ भी कहा जाता है। आपको रक्षक भी कहा जाता है। आप तो भक्तों और अबलाओं की रक्षा के लिए अनेक रूप भी धारण करते हैं। आप ही राम हैं,आप ही अल्लाह हैं,आप ही ईश हैं और आप घट-घट में वास करते हैं तो यह हैवानियत क्यों भारी पड़ रही है। हमने सुना है कि मनुष्य को कर्म का दंड मिलता है। मैं भी मानता हूँ कि कर्म के अनुसार मनुष्य को फल भी मिलना चाहिए,लेकिन हमें समझ में नहीं आता कि कुछ दिन,कुछ माह और नाबालिगों के साथ भी दुष्कर्म किया जाता है,इनकी क्या गलती होती है ? ये तो अभी अपने पैरों पर चल भी नहीं पाते,इन्हें तो दुनिया की खबर भी नहीं होती है। अगर इन्हें किसी गलती की सज़ा मिलती है,तो इनके साथ गलत करने वाले और उनको बढ़ावा देने वालों को सज़ा क्यों नहीं मिलती ? अगर दोषियों को दुष्कर्म के बाद तुरंत मृत्युदंड दिया जाता तो शायद हमें इंसानियत पर शक नहीं होता। आखिर कब तक हम मनुष्य एक-दूसरे को शक की नज़र से देखेंगे,आखिर कब तक हम अपने घर में डर कर रहेंगे ?
“आइए हम सब मिलकर अलख जगाएं,
भ्रष्टाचार मुक्त अपने भारत को बनाएं।
कहे `उमेश` जब शिष्टाचार सबके घर में आएगा,
स्वर्ग से भी सुंदर हमारा हिन्दुस्तान बन जाएगाll”
आखिर कब तक ? मैं इस प्रश्न को दुहराता रहूँगा। आइए इस प्रश्न का उत्तर भी आपके सामने रख ही देता हूँ। इस तरह की समस्याओं का सामना हमें तब नहीं करना पड़ेगा,जब हम अपने बच्चों को नैतिकता का भान कराएंगे,उन्हें अनुशासन में रहना सिखाएँगे,इंसानियत का पाठ पढ़ाएंगे,सभ्यता और संस्कार सिखाएँगे,स्वार्थ छोड़कर परमार्थ करना सिखाएँगे,स्त्री और बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाएँगे,`जीयो और जीने दो` तथा `जीवों पर दया करो` जैसे सुविचार के साथ सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाएँगे। हमारे समाज और देश में भ्रष्टाचार तब नहीं होगा,जब सत्ताधारी अपनी सत्ता का गलत प्रयोग नहीं करेंगे,क्योंकि ये लोग ही गलत करते हैंl फिर उस गलती से बचने के लिए सबूत मिटाते हैं,न्यायाधीश एवं वकीलों को खरीद लेते हैं या संविधान के नियमों में परिवर्तन कराते हैं। राक्षसी व्यवहार करने वाले लोग आज राजसी ठाठ-बाट से जी रहे हैं और सज्जन,किसानों एवं मजदूरों की स्थिति दयनीय है।
आइए हम सब मिलकर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को जड़ से खत्म करने के लिए एकसाथ कदम से कदम मिलाकर चलें,और डटकर सामना करें,नहीं तो पछतावे के अलावा कुछ नहीं कर पाएंगे। पापियों का सफाया करने के लिए हमें ही कुछ करना होगा,क्योंकि कहा गया है कि,`घट-घट व्यापत राम।` अर्थात हम सबके अंदर परमात्मा का अंश है। आइए हम सब मिलकर इसको साकार रूप दें। हम सभी इंसान हैं। हमें आपस में किसी प्रकार का किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए। यही ईमान है,यही पूजा है,यही हमारा धर्म और कर्म है। हमारे किसी भी कार्य से किसी को कोई दु:ख ना हो,हमें सदा यह ध्यान रखना चाहिए। ‘जीयो और जीने दो’ हमें सदा ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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