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शिकार

सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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रोशनी में हुए तीरगी के शिकार।
हम हुए फिर तिरी मुख़बिरी के शिकार।

जो हुए हैं ‘तिरी बेरुख़ी के शिकार।
हो गए लोग वो ‘ख़ुदकुशी के शिकार।

दुश्मनों से न हारे जो जग में ‘कभी,
वो हुए हैं ‘यहाँ दोस्ती के शिकार।

उन ‘के अरमाँ न हो पाए पूरे ‘कभी,
जो रहे मुस्तक़िल मुफ़लिसी के शिकार।

जिनको ‘मरना है मर जाएँ फ़ैशन पे वो,
हम ‘हुए आपकी’ सादगी के शिकार।

काम होश ‘ओ ख़िरद से न ले पाए जो,
लोग वो ‘ही हुए रहबरी ‘के शिकार।

हमने देखा है दुनिया में’ अकसर ‘फ़राज़’,
कितने ‘मुफ़लिस हुए बेबसी’ के शिकार॥

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