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अधूरे सपने…

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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हँसते-चीखते गली-मोहल्ले,
अब वीरान से हो गए हैं
शहर के सारे चौराहे,
अब सुनसान हो गए हैं।
घर-परिवार के लोग,
घरों में कैद हो गए हैं
और परिवार तक ही,
अब सीमित हो गए हैं।
और बनावटी दुनिया को,
अब वो भूल से गए हैं
महानगर बेहाल हो गए हैं,
माल-सिनेमा बंद हो गए हैं।
पर गाँवों की चौपाल,
अब आबाद हो गई है
क्योंकि गांवों के बाशिंदे,
गाँव लौट आए हैं।
और गाँवों में शहरों जैसी,
चहल-पहल बढ़ाए हैं
छोड़कर चकाचौंध शहरों की,
सुख-शांति से जीने आए हैं।
बेटा-बहू,नाती-पोते आदि,
गाँव-परिवार में लौट आए हैं
और सुख-दु:ख के लिए,
अपनों के बीच आ गए हैं।
और आधुनिकता को अब,
शहरों में छोड़ आए हैं
और गाँव की खुली हवा में,
मानो वो अब जीने आए हैं।
और अपनी पुरानी संस्कृति को,
अब ठीक से समझ पाए हैं
जिंदगी की बहुत बड़ी सीख,
दुनिया वालों को मिली हैl
बनावटी चकाचौंध क्या है,
ये दुनिया को समझ आया है
विश्व शक्ति बनाने के चक्कर में,
अपने घरों को आग लगा दी।
और इसके अच्छे-बुरे परिणाम,
पूरे विश्व को दिला दिए हैं
इससे तो हम लोग अच्छे थे,
अपने पुराने दौर में।
जिसमें रूखी-सूखी खाकर,

कम-से-कम शांति से जीते थेll

परिचय–संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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