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स्वतंत्रता दिवस:बलिदानों की कहानी

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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स्वतंत्रता दिवस विशेष ……..

१५ अगस्त २०२० को हमारा ७४ वाँ स्वतंत्रता दिवस है। प्रथम स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त १९४७ को मनाया गया था; जिसमें मैंने भी भाग लिया था। उस समय मैं कोई १० वर्ष का रहा होऊँगा और गाँव के विद्यालय की प्रथम कक्षा का विद्यार्थी। मुझे अभी भी याद है कि गाँव के बड़े और बच्चे शाला में स्वतंत्रता का स्वागत करने १४ अगस्त को रात्रि में इकट्ठे हुए थे। रात्रि के ठीक १२ बजे हमारे गाँव के स्वतंत्रता सेनानियों,शिक्षकों, विद्यार्थियों ने एक स्वर से नारा लगा दिया कि हम आजाद हो गये। फिर हम लोग अपने-अपने घर आये। उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम का बड़ा जोर चल रहा था। स्वतंत्रता दिवस के पहले भी अगस्त-क्रांति के दिन ‘ऐ अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का खूब नारा लगा था,जिस दिन अमरूद के पेड़ पर चढ़कर मैंने भी वह नारा लगाया था।
स्वतंंत्रता प्राप्ति के साथ भारत का विभाजन हो गया था और हिन्दुस्तान तथा पाकिस्तान २ देश बन गये थे। हिन्दुस्तान से इच्छुक मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे और पाकिस्तान क्षेत्र से प्रताड़ित हिन्दू,सिख हिन्दुस्तान आ रहे थे। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान क्षेत्रों में भीषण दंगा फैला हुआ था। वैसे ही समय में,जब देश आजादी का जश्न मना रहा था,स्वतंत्रता-संग्राम के नायक-महात्मा गाँधी,बंगाल के नोवाखाली में दंगा शान्त कराने घर-घर घूम रहे थे।
जो जहाँ था,वहीं दंगे की आग में झुलस रहा था। मेरे गाँव की ही बात है,-एक दिन किसी ने झूठी खबर लहरा दी कि बगल के गाँव में मुसलमानों ने हिन्दुओं से कहा कि जो भी भक्का-बगिया (चावल का एक रसदार पकवान) खाना है तो खा लो,रात में किसी को भी बचने नहीं देंगे। अगले दिन खबर दी गई कि बगल के गाँव में दंगा भड़क गया है और मुसलमान हिन्दुओं को छोरते (धान की पकी फसल को कचिया से काटते आगे बढ़ना) आ रहे हैं! यह सुनकर लोगों में खलबली मच गई। अड़ोस-पड़ोस के गाँवों में खबर बिरनी के छत्ते की तरह फैल गई। रात होते -होते पास के गाँवों के लोग हाथ में लाठी-भाला-तलवार आदि लिए,माथे पर उलटा कटोरा मुरेठा के साथ बाँधे तथा कंधे पर खाली बोरा रखे झुंड के झुंड लोग हमारे गाँव के विद्यालय के पास आकर जमा होने लगे। जय बजरंग बली का नारा लगाने लगे और बगल के मुस्लिम बहुल गाँव में धावा बोलने के लिए उनमत्त होने लगे। तभी हमारे गाँव वासी विधायक ने बड़ी मुश्किल से भीड़ को रोका और कहा कि खबर झूठी है। तब तक बगल के गाँव से भी हिन्दू-मुस्लिम मिलाकर ५
आदमी शाला के पास आये और अपनी बात रखी कि हमलोग भाई-भाई हैं और अफवाह झूठी है। तब बड़ी मुश्किल से भीड़ के लोग रुके। विधायक,जो खुद बड़े स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यकार थे,तथा अन्य संभ्रांत लोगों के समझाने पर उग्र भीड़ वापस हुई।
यह बँटवारे की त्रासदी थी। बाद में रिपोर्ट मिली कि ७२,२६००० मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और ७२,४९००० हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।
अब स्वतंत्रता-दिवस पर अपने भावों को कविता के माध्यम से व्यक्त करता हूँ-
‘हर वर्ष ही आता है यह-
हमारा स्वतंत्रता दिवस;
देने हमें खुशी की घड़ियाँ-
देने हमें सुख और सर्वस्व!
पर क्या कभी सोचा हमने-
फहर क्या कहता है तिरंगा;
किसने खून की लाली से-
धरती माता को है रंगा!
लाल रंग यह कहता नहीं-
क्या बलिदानों की कहानी;
और हरा है बनता नहीं-
मेहनतकशों की निशानी!
उजला कहता क्रांति नहीं-
शांति से ही बात बनेगी;
प्रगति-चक्र चलने से ही-
जन-जन की भूख मिटेगी!
क्या आजादी नहीं कहती-
इसके लिये सभी लड़े थे;
जाति-पाँति व भेदभाव के-
पचड़े में नहीं पड़े थे!
एक ही थी देश की भाषा-
एक था सबका ही विश्वास;
उत्सर्ग समर्पण देशहित ही-
सबकी थी एक ही आवाज!
आयें स्वतंत्रता दिवस पर-
सब मिलकर एक हो जायें;
जाति-पाँति, प्रांत से बाहर हो-
सभी भारतवासी कहलायें!’

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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