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देते रहना आशीष

भुवनेश दशोत्तर
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….

हे भास्कर! हे ज्योतिर्मय! हे प्रत्यक्ष देव!
उधर आपका दिव्यरथ बढ़ रहा नई राशि की ओर
और,
इधर हम
संक्रांति के इस उत्सव में
उल्लासित हृदय से,
अंजुलि में अर्ध्य लिए
प्रार्थनाएँ बुदबुदा रहे हैं।

हे सूर्यदेव!
प्रार्थना है कि,
हमने अपना ध्येय किसी पतंग-सा
ऊर्ध्वगामी किया है,
देना इसे आशीष अपना
धरा से ऊँचाई तक,
इसने बहुत संघर्ष किया है।

हे त्रिगुण स्वरूप!
प्रार्थना है कि,
इस धरा पर आपके
स्वर्णिम वरदान से,
सर्वदा हरीतिमा लहराती रहे।

देते रहना आशीष कि,
गुड़ की डलियों-सी मीठी
खुशियाँ चहुँ ओर बंटती रहे,
विश्वास और सौहार्द्र की धारा
अनवरत बहती रहे।

हे करुणामय!
प्रार्थना यही कि,
हों सारे दु:ख दूर
क्रंदन,आर्तनाद मिट जाएँ।
प्रेम,करूणा,शांति के स्वर,
हर दिशा में गुंजित हो जाएँ॥

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