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मतभेद भुलाने का पर्व संक्रांति

सानिया आदिल पाशा
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….


सूर्य ने अपनी आँखें खोली,आकाश में उजाला छा गया। पक्षी अपने-अपने घरों से दाने की खोज में निकल पड़े। मुर्गे ने सबको संदेश दिया, जागो आज मकर संक्राति है। रमेश पिता के साथ आँगन में बैठा था। उसने अपने बाबा से पूछा कि,बाबा मकर संक्रांति का मतलब क्या है ? बाबा ने बताया,आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। बाबा रमेश को टहलने ले गए और मकर संक्रांति के बारे में बताने लगे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूँकि,शनि मकर राशि के देवता हैं इसी कारण इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
इस दिन से पहले सूर्य पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध पर सीधी किरणें डालता है,जिसके कारण उत्तरी गोलार्ध में रात्रि बड़ी और दिन छोटा होता है। इसी वजह से ठंड का मौसम भी रहता है। इसी दिन से सूर्य पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ना शुरू होता है,जिसके कारण मौसम में परिवर्तन और यह फसलों के लिए फायदेमंद होता है।
बाबा बोले-माता यशोदा ने संतान प्राप्ति के लिए ही इसी दिन व्रत रखा था। इस दिन महिलाएं तिल,गुड आदि दूसरी महिलाओं को बाँटती हैं। ऐसा माना जाता हैं कि तिल की उत्पत्ति भगवान् विष्णु से हुई थी। इसलिए इसका प्रयोग पापों से मुक्त करता है। तिल के उपयोग से शरीर निरोगी रहता है और शरीर में गर्मी का संचार रहता है।
महत्व की बात तो यह है कि,पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने के लिए मतभेदों के बावजूद मकर संक्रांति को महत्व दिया गया है।
हाँ,बाबा बहुत अच्छा। बाबा क्या हम मिलकर आज पतंग उड़ाएं ?
हाँ,चलो। और दोनों पतंग उड़ाने चले गए।

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