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बदलता है रंग आसमाँ भी कैसे-कैसे..

डॉ. स्वयंभू शलभ
रक्सौल (बिहार)

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बड़े अज़ीब दिन हैं ये और बड़े अजीब हैं ये अहसास…,हर दिन मानो एक नया इम्तहान लेकर सामने आता है और दिलो-दिमाग पर उदासी की एक नई लकीर खींचकर चला जाता है…l इस जद्दोजहद से बाहर निकलने की कोशिश भी कामयाब नहीं होती…,भीतर का अंधेरा बाहर के अंधेरे के साथ साठ-गाँठ कर लेता है…l
देखिये क्या आलम है…कहीं बिजली कहर बरपा रही है,तो कहीं मूसलाधार बारिश से जिंदगी बेजार है…,कहीं तूफान का खतरा मंडरा रहा है तो कहीं बाढ़ तबाही मचा रही है…l इसी बीच धरती भी डोल रही है…टिड्डियों को आक्रमण के लिए भी यही समय मिला है और यह सब तब हो रहा है,जब पूरी दुनिया पूरी तरह कोरोना संक्रमण की जद में है…l
एकसाथ एक ही समय में घटित हो रही ये तमाम घटनाएं कयामत से पहले कयामत का अहसास कराने पर आमादा हैं…l जिंदगी इतनी अस्त-व्यस्त और दुनिया इतनी अव्यवस्थित पहले कभी नहीं लगी…l यह केवल आपदाओं से जंग का समय नहीं है,यह अपने-आपसे भी जंग का समय है…l

बहरहाल,जिस दौर से हम सब गुजर रहे हैं,उस दौर में उम्मीद की डोर को थामे रखना बेहद जरूरी है,और इस बात का ख्याल रखना भी जरूरी है कि,उस डोर की पकड़ ढीली न पड़े…l हम सब अपनी सकारात्मक ऊर्जा को इकठ्ठा करें,और सामूहिक रूप से प्रार्थना करें कि मानव जीवन पर छाया यह संकट जल्द टले…l ईश्वर सबकी रक्षा करें…प्रकृति हमें क्षमा करे…हमारे आत्मविश्वास को संबल मिले और जिंदगी फिर से अपनी राह पर लौटे…l

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