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सर्दी

सुरेश चन्द्र सर्वहारा
कोटा(राजस्थान)
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घाटी में जब बर्फ गिरी तो
मौसम ने पलटा खाया,
साथ इसी के मैदानों में-
ठिठुराता जाड़ा आया।

तीखी-तीखी हवा चल पड़ी
ठिठुरन है बढ़ती जाती,
नहीं छाँव अब लगती अच्छी-
धूप बहुत मन को भाती।

शीतलहर का जोर बढ़ रहा
बन्द घरों के दरवाजे,
किट-किट करते दाँत ठण्ड से,
बजा रहे फिर भी बाजे।

अपने में सिकुड़े हैं पक्षी
काँप रहे पशु खड़े-खड़े,
ढूँढ रहे सब यहाँ-वहाँ पर-
नर्म धूप के हैं टुकड़े।

जिनके पास नहीं है साधन
सर्दी है उनपर भारी,
जान बचाने की रहती है-
उनको हर पल लाचारी।

हम गरीब की पीड़ा समझें
करें दर्द कुछ उनके कम।
नहीं बने दुखदायी जिससे-
उनको सर्दी का मौसम॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैL जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैL आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैL प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंL आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैL

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