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समानता,स्वतंत्रता और स्वछंदता में अंतर समझना अति आवश्यक

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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कुदरत ने यह सृष्टि नर और मादा से निर्मित की है,दोनों के अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे के पूरक और बराबर हैं। नर-नारी दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। सबसे प्राचीन और विकसित सनातन संस्कृति तो इससे भी एक कदम आगे बढ़कर ‘यत्र नार्यास्तु पूज्यंते,रमंते तत्र देवता’ के सिद्धांत का प्रतिपादन करती है। अतीत में एक से बढ़कर एक विदुषी,राजनीतिक कुशलता की धनी,वीरांगनाओं, भक्ति से ओत-प्रोत नारियों के गौरवमयी इतिहास की कहानियां दिखाई पड़ती है।
कालांतर मे धीरे-धीरे कट्टरपंथी सोच विकसित हुई,जिसने महिलाओं को दोयम दर्जे में रखा तथा बहु विवाह एवं बच्चे पैदा करने की मशीन के रूप में इस्तेमाल किया। कमोबेश यह स्थिति आज भी कट्टरपंथी सोच में विद्यमान है। वास्तव में इसमें ही सुधार अति आवश्यक है।
बाद में पाश्चात्य संस्कृति ने स्वतंत्रता की परिभाषा ही बदल दी और नारी को स्वच्छंद रूप से अंग प्रदर्शन करवाकर विज्ञापन के रूप में प्रस्तुत किया। वास्तव में ये दोनों बात उचित नहीं है,न तो कट्टरपंथी मान्यता को सही ठहराया जा सकता-न ही पाश्चात्य पद्धति को सही ठहराया जा सकता है।
सनातन संस्कृति की मान्यता ही नारी को समानता और स्वतंत्रता के साथ उसका गौरव प्रदान करेगी। आज के संदर्भ में पाश्चात्य रहन-सहन ने किस तरह से स्वतंत्रता को स्वछंदता में बदल दिया है,इसे ‘लिव इन रिलेशनशिप’,भागकर विवाह, विवाहेत्तर संबंधों को कानूनी मान्यता देना आदि के रूप में देखा जा सकता है,और इनके दुष्परिणामों को बखूबी अनुभव किया जा सकता है।
समाज में हर जगह महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिलना ही चाहिए और यह मिल भी रहा है। घर की चारदिवारी और कट्टरपंथी सोच के अंदर अगर कुछ अपवादों को छोड़ दें,तो आज कानून और समाज ने हर जगह महिलाओं को पुरूषों से ज्यादा अधिकार दे रखे हैं,लेकिन इनका सदुपयोग तभी हो सकता है जब हम समानता,स्वतंत्रता और स्वछंदता में अंतर करना सीख जाएं।
यह बात सच है कि हजारों बहुएं दहेज और घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं,हजारों लड़कियां उम्रदराज होकर अविवाहित हैं,पर यह भी उतना ही सच है कि हजारों निर्दोष वृद्ध सास-ससुर तथा पति के परिवार के नजदीकी सदस्य,रिश्तेदार यहां तक कि नजदीकी इष्ट मित्र भी झूठे दहेज और घरेलू हिंसा के प्रकरणों में सलाखों के पीछे गए हैं। जहां आए दिन महिला प्रताड़ना के प्रकरण दिखाई-सुनाई पड़ते हैं,वहीं ‘मी टू’ और ‘हनी ट्रैप’ के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं।
वास्तव में दोनो पक्षों को अपने गुण,कर्म,स्वभाव, चिंतन और अपने चरित्र में निष्पक्षता से सुधार की जरूरत है। दोनों पक्ष एक-दूसरे को अपना पूरक समझें,एक-दूसरे की भावनाओं को महसूस करें, तभी समाज में सुख-शांति कायम रह सकती है।

परिचय-प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।