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जै श्री कृष्ण

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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कृष्ण धूप,कृष्ण छाँव,
कृष्ण फूल,पात हैं।
कृष्ण श्वाँस,कृष्ण नैन,
कृष्ण मनुज गात हैं॥

कृष्ण भोर,कृष्ण शाम,
कृष्ण भानु,इंदु हैं।
कृष्ण व्योम,कृष्ण धरा,
कृष्ण जगत बिंदु हैं॥

कृष्ण सखा,कृष्ण भ्रात,
कृष्ण मातु,तात हैं।
कृष्ण नीर,कृष्ण क्षीर,
कृष्ण मधुर वात हैं॥

कृष्ण सरी,कृष्ण सिंधु,
कृष्ण सरी तीर हैं।
कृष्ण हास,कृष्ण रास,
कृष्ण नैन नीर हैं॥

कृष्ण गीत,कृष्ण रीत,
कृष्ण नाद,घोष हैं।
कृष्ण भूख,कृष्ण तीस,
कृष्ण पूर्ण तोष हैं॥

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।

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