जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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आढ़ती के जाल में क्यों पूत धरती के जड़े हैं।
धुंध ने धरती ढकी है,मेघ औंधे मुँह पड़े हैंll
वो भला कैसे पढ़ेंगे पेट का भूगोल मेरा,
आढ़ती कैसे लगायेगा फसल का मोल मेरा।
देश को अस्थिर बनाने आ गये चिकने घड़े हैं,
घुंध ने धरती ढकी है,मेघ औंधे मुँह पड़े हैं…ll
देश की सरकार मानो चार खम्बों पर खड़ी है,
इन सुधारों में किसानों की छिपी बूटी-जड़ी है।
तीसरे-चौथे यहां खुद आंदोलन में खड़े हैं,
घुंध ने धरती ढकी है,मेघ औंधे मुँह पड़े हैं…ll
मूल्य निर्धारण में देखो खामियां ही खामियां हैं,
क्यों सुधारों पर हुई सरकार की बदनामियां हैं।
सौ टमाटर बिक रहे हैं चार दिन पहले सड़े हैं,
धुंध ने धरती ढकी है,मेघ औंधे मुँह पड़े हैं…ll
खेत में फांसी लगाकर मर गये हल्कू फकीरा,
यूनियन के चौधरी का तब कहाँ सोया जमीरा।
यूनियन के पास में क्या मौत के ये आँकड़े हैं,
धुंध ने धरती ढकी है,मेघ औंधे मुँह पड़े हैं…ll
आय दुगनी कर रहेंगी ठोकती सरकार दावा,
पर विरोधी स्वर यहां तो उग रहा बारूद लावा।
घाव हलधर
इस सदी के गत सदी से भी बड़े हैं,
धुंध ने धरती ढकी है,मेघ औंधे मुँह पड़े हैं…ll