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कामवाली बाई

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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“मम्मी! मेरा रुमाल,कल ही तो मेज पर रखा था। आज नहीं है।” शानू तमतमाई-सी बोली।
“ओह! तुम्हें कभी मिला है जो आज मिलेगा,ठिकाने पर रखो तब न।” मैं बड़बड़ाती रसोई से बाहर निकली और दूसरा रूमाल अलमारी में से निकाल कर दिया।
“जल्दी दो,देर हो रही है।”
वह रूमाल मेरे हाथों से छीनती-सी ले भागी।
उसकी सहेली जाहिरा ने वह रुमाल अपने हाथों से कशीदा कर उसके जन्मदिन पर दिया था। पिछले कुछ दिनों से ऐसा ही चक्र चल रहा था। कभी घड़ी,कभी रुमाल,कभी फ्रेंडशिप बैंड इत्यादि छोटी-मोटी चीजें गुम हो रही थी। कुछ भी सामान गुम होता,बच्चे हंगामा करते और मेरी सासू माँ इसी मौके की तलाश में रहती,-“कौन ले जाएगा! कामवाली ले गई होगी,नहीं तो क्या घर खा गया ?”
मेरी समझ से परे था। आखिर सामान जाता कहां है ? दो कामवाली बदल ली,फिर भी सिलसिला जारी। औरों को कामवाली से कोई शिकायत ना थी,फिर हमारे घर में क्या भूत सामान गायब करता है। दिन बीतने लगे। एक दिन अचानक मेरी सासू माँ को दिल का दौरा पड़ा। आईसीयू में भर्ती करवाना पड़ा। जब वे सामान्य हुई तो बोली,-“यह चाबी ले,और मेरी अलमारी में से साड़ी-ब्लाउज लेकर आजा।”वे अपनी अलमारी का ताला हमेशा लगा कर रखती थीं। खोलती तब थीं जब कोई कमरे में ना हो और चाबी हमेशा अपनी कमर में बांध कर रखती थीं। मैंने अलमारी खोली, साड़ी-ब्लाउज निकाले और बंद करने लगी। अचानक मेरी नजर स्टील के एक बड़े डिब्बे पर पड़ी। कौतूहलवश! मैंने खोल कर देखा मैं दंग रह गई। चश्मा,घड़ी,रुमाल जो सामान गायब हुआ वह व्यवस्थित ढंग से डिब्बे में रखा था। और हम सब कामवाली पर इल्जाम लगा रहे थे। मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। अतः पतिदेव ने कामवाली रख दी थी,और सासू माँ चाहती थी घर का सारा काम मैं ही करूं।
मुझे अफसोस हो रहा था। चोर कामवाली को बता रहे थे, मगर चोर घर में था और बेचारी कामवाली निर्दोष होते हुए भी दोषी थी|

परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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