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एक बार तो लें हम झाँक

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
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घिरे हुए दुःख के सायों से
दुनिया के सारे इंसान,
सहज भाव से जीवन जीना
नहीं रहा है अब आसान।
आज अकेले सब जीते हैं
टूट रहे पग-पग विश्वास,
वे ही धोखा दे जाते हैं
बँधी हुई है जिनसे आस।
एकसार जीवन जीते भी
मानव जब जाता है ऊब,
तब वह मन के अंधेरों में
धीरे-धीरे जाता डूब।
उसे अकेलापन भाता है
रहने लगता वह खामोश,
शेष नहीं बचता जीवन में
कर्मों के प्रति कोई जोश।
चाहे कुछ पल हँस लेता हो
शेष समय पर रहे उदास,
कुछ पाने की कोई इच्छा
बची न उसकी रहती खास।
मानव-मन की इस हालत को
कहने लगते हम ‘अवसाद’,
स्वस्थ देह को भी कुछ दिन में
कर देता है यह बर्बाद।
कभी आत्महत्या का कारण
बन जाता है यही विषाद,
पास बचा रहता अपनों के
पछतावा ही इसके बाद।
अवसादों से ग्रस्त व्यक्ति का
रखना होगा पूरा ध्यान,
मनोचिकित्सक से भी इसका
करवाना है उचित निदान।
उसके मन के अंध कुएँ में
एक बार तो लें हम झाँक,
अँधियारों की गहराई को
थोड़ा-थोड़ा लें फिर आँक।
बनें सहारा हम सब उसका
खुल कर दुःख की पूछें बात।
जब फूटेगी किरण सुबह की
कट जाएगी काली रात॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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