मदन गोपाल शाक्य ‘प्रकाश’
फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)
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सूर्य से निकली,नन्हीं किरण,
देती जो बदल,है पर्यावरण।
भोर भुरारे की छवि न्यारी,
दिन में दिनकर धूप प्यारी।
करते रौनक न्यारी न्यारी,
भोर दोपहरी शाम सुखारी।
सूर्य से जगमग है आवरण,
सूर्य से निकली नन्हीं किरण…॥
निर्मल रूप किरण की काया,
सूरज से प्रकाश जग छाया।
पहली किरण भूमि पर आती,
प्रकृति अलंकृत भू हो जाती।
प्राणी जीव नवल सुख पाते,
फल और फूल,धरा महकाते।
सुमन खोलते निज आवरण,
सूर्य से निकली नन्हीं किरण…॥
है प्राणवायु स्वांस सब पाते,
जीवन यापन सब कर जाते।
शोभित है सुंदर जो धरणी,
सूर्य से निकली नन्हीं किरण…॥