कृष्ण कुमार कश्यप
गरियाबंद (छत्तीसगढ़)
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हैं ओ भी इंसान उनको,ज़रा दुलार दीजिए,
दिल से गरीबों की ज़रूर मदद,यार कीजिए।
आखिर क्यों ? इतनी नफ़रत उनके लिए यार,
ना फर्क कभी,गली,गाँव और शहर कीजिए।
कुंठा,हताशा,निराशा,बेबसी लिए ताक रहे,
आह गरीबों की,कभी भी,ना यार लीजिए।
अरमान उनके दिल में भी हैं,उड़ने के बहुत,
आजाद पंछी हैं,मन के उनको पर दीजिए।
तरसते होंगे कान उनके,मीठे बोल के लिए,
गाली देकर खुद की जुबां ना ज़हर कीजिए।
धंसते ही जा रहे पाँव उनके,शोषण भार से,
खड़े हो जाएं गरीब,कोई चमत्कार कीजिए।
अब काट भी दो तुम गुलामी की जंजीरों को,
स्वतंत्रता का उनको भी सुअवसर दीजिए।
नफ़रत आग की मानिंद है,दुनिया बचा ले रब,
मोहब्बत ख़ाक ना हो जाए,उपकार कीजिए॥
परिचय-कृष्ण कुमार कश्यप की जन्म तारीख १७ फरवरी १९७८ और जन्म स्थान-उरमाल है। वर्तमान में ग्राम-पोस्ट-सरगीगुड़ा,जिला-गरियाबंद (छत्तीसगढ़) में निवास है। हिंदी, छत्तीसगढ़ी,उड़िया भाषा जानने वाले श्री कश्यप की शिक्षा बी.ए. एवं डी.एड. है। कार्यक्षेत्र में शिक्षक (नौकरी)होकर सभी सामाजिक गतिविधियों में सहभागिता करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी और लघुकथा है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचना प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य ग़ौरव सम्मान-२०१९, अज्ञेय लघु कथाकार सम्मान-२०१९ प्रमुख हैं। आप कई साहित्यिक मंच से जुड़े हुए हैं। अब विशेष उपलब्धि प्राप्त करने की अभिलाषा रखने वाले कृष्ण कुमार कश्यप की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा को जन-जन तक पहुंचाना है। इनकी दृष्टि में पसंदीदा हिंदी लेखक- मुंशी प्रेमचंद हैं तो प्रेरणापुंज-नाना जी हैं। जीवन लक्ष्य-अच्छा साहित्यकार बनकर साहित्य की सेवा करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“मेरा भारत सबसे महान है। हिंदी भाषा उसकी शान है।”