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देखो! आया बसंत

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..


देखो! आया वसंत,
पीली चादर ओढ़े
बैठा है शिशिर संत,
मन भाया बसंत।
देखो! आया बसंत…

सजनी के गालों में,
प्रिय! कदम तालों में
घुंघराले बालों में,
चाहत के प्यालों में
समाया बसंत।
देखो! आया बसंत…

बाग-बगीचों ने,
गेंदे के फूलों ने
मयूर की पाखों ने,
विरवा की शाखों ने
बुलाया बसंत।
देखो! आया बसंत…

केसर की क्यारी पर,
माँ की फुलवारी पर
सरसों के खेतों पर,
रेतीले टीलों पर
पाया बसंत।
देखो! आया बसंत…

मन के झरोखों में,
पुरवा के झोंकों में
गजरों में,नजरों में,
गाँवों में,शहरों में
छाया बसंत।
देखो! आया बसंत…

प्रकृति संवरी है,
पृथ्वी निखरी है
हर्षित तन-मन है,
हर्षित दिगन्त
लाया बसंत।
देखो! आया बसंत…

ब्रह्मा जी माली बन,
कमंडल छलकाया
अमृतमयी बूंदों को,
चहुँओर बिखराया
माया आनन्त।
नहीं भावों का अंत,
देखो! आया बसंत…॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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