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प्रेम दिवस पर प्रेमियों से आव्हान

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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मैं प्रेमी हूँ,इससे समाज वालों के पेट में दर्द क्यों होता है। दर्द होता है तो हो मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आखिर प्रेम भी तो ईश्वर का दिया गया उपहार है। रामायण,महाभारत के काल से आज तक प्रेम भी मृत्यु की तरह शाश्वत है,पर ये कटु सत्य है कि जमाने को किसी का प्यार करना सुहाता नहीं है।
प्रेम पर बड़े बड़े ग्रंथ लिखे गए,कितनी ही कविताएँ लिखी गई,लगभग सारी फिल्में प्रेम पर ही बनी। कई लोगों ने अभ्यास करके भी जीवनी लिखी, लेकिन समाज में आज भी प्रेम को जायज और नाजायज दो अलग-अलग दृष्टि से देखा जाता है। प्रेम जब एक शब्द है तो दृष्टि दो क्यों ? अलग तो उनको दिखता है जिनकी दृष्टि में दोष होता है। महापुरुषों ने कहा है-“दृष्टि बदलो,सृष्टि बदल जाएगी।”
प्रेम हर कोई करता है,पर पाता भी है ये कहना थोड़ा मुश्किल जरुर है,लेकिन असंभव नहीं। “सियासत और मोहब्बत में सब जायज है,” ये सूत्र जिसने रट्टा लगा के जेहन में उतार लिया,उसके प्रेम में सफल होने की संभावना ज्यादा होती है। आज निःसंकोच प्रेमियों के हक में बात करुंगा, क्योंकि प्रेम का त्यौहार है और हर कोई प्रेमी है। कोई खुल्लम- खुल्ला तो कोई दबे-छुपे। प्रेमियों को समाज ने सदैव हैय दृष्टि से देखा है। समाज तो ठीक,सरकार ने भी इनके लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं किया। कोई आयोग प्रेमियों के हित में नहीं बनाया ।
प्रेम एक तरफा हो,तो यह बेदर्द समाज प्रेमी को अंधा तक कह देता है,लेकिन सरकार की कोई नीति नहीं कि प्रेमी को अंधा कहने वाले को सजा दी जाए। देश का बहुत बड़ा वर्ग प्रेमी वर्ग है, इसके बावजूद कोई दल प्रेमियों की परवाह नहीं करता है। हर जगह प्रेमी उपेक्षा के शिकार हैं। प्रेमी अपने प्रेम को पाने के लिए क्या-क्या नहीं करता,यहाँ तक कि जान की बाजी भी लगाने को हरदम तैयार रहता है। भाग जाना और भगा ले जाने वाली परम्परा तो महाभारत काल में श्रीकृष्ण और रुक्मणी के समय से आज तक जारी है लेकिन इसके लिए बाहुबल का सामर्थ चाहिए,नहीं तो हाथ-पैर बोनस में तुड़वाने पड़ जाते हैं।
अब प्रेमियों को भी अपना राजनीतिक वर्चस्व बनाना चाहिए। समाज और सियासत उसी की होती है,जो एकजुट होते हैं। जो एकजुट नहीं है,वे केवल जूते खाते हैं। देश का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है,जहाँ प्रेमियों का बोल-बाला न हो। हर जगह प्रेमियों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। हर विभाग में प्रेमियों के लिए आरक्षण होना चाहिए। देश में जब सबके विकास की बात चल रही है,तो प्रेमियों का भी विकास होना चाहिए।
प्रेमियों को मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के गठन की ओर अग्रसर होना पड़ेगा। जो एनजीओ पीछे के रास्तों से प्रेमियों की मदद करते आए हैं,उनको सामने के रास्ते से प्रेमियों को मिलवाने,घर वालों को मनाने और न माने तो प्रेमियों को भगवाने की व्यवस्था करना चाहिए,ताकि समाज में और देश में उन एनजीओ का नाम प्रेम के क्षेत्र में सम्मान से लिया जा सके,और भविष्य में राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए उनकी अनुशंसा प्रेमियों द्वारा की जा सके।
सभ्य समाज और प्रेमियों की स्थिति हमेशा से देव-दानव की तरह रही है। दानवों को देवता फूटी आँख नहीं सुहाते हैं। आज भी वही स्थिति प्रेमियों और समाज की है। दोनों के बीच परम्परागत छत्तीस का आँकड़ा आज भी बना हुआ है। देवासुर संग्राम की तरह ही प्रेमियों को अपने अधिकार पाने के लिए इतिहास के उदाहरणों की पीठ पर, परम्पराओं की रस्सी से,विचारों का पर्वत रख कर समाज के साथ मथना होगा और प्रेमामृत का पान हर इंसान को करवाना होगा,तभी प्रेमियों का साम्राज्य बना रह सकेगा। वरना,अपनी पहचान भी खो बैठेंगे प्रेमी। प्रेमियों जागो,अपनी शक्ति का प्रदर्शन करो।
‘प्रेम दिवस’ पर सभी प्रेमियों से आव्हान करता हूँ कि,समाज तुम्हारा बहिष्कार करे,तुम उससे पहले समाज का बहिष्कार कर दो और अपने प्रेमी या प्रेमिका के साथ प्रेम समाज में शामिल हो जाओ। काम देव और रति को अपने आराध्य के रूप में प्रतिष्ठित करवाओ,और प्रेम नगर की स्थापना करो।

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