अख्तर अली शाह `अनन्त`
नीमच (मध्यप्रदेश)
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प्रेम लोक परलोक सुधारे,
मेरा तो अनुमान यही है।
प्रेम इबादत है,पूजा है,
भक्ति यही,भगवान यही है॥
प्रेम को जिसने भी पहिचाना,
उसने सबको अपना माना।
रब का रूप देखकर सबमें,
सबको सेवा लायक जाना॥
तम में कर देता उजियारा,
लासानी दिनमान यही है।
प्रेम इबादत है,पूजा है,
भक्ति यही,भगवान यही है…॥
प्रेम नाव,पतवार बना है,
प्रेम स्वर्ग का द्वार बना है।
सुख सम्पत्ति की रक्षा के हित,
ये ही पहरेदार बना है॥
नग्न बदन को ढकने वाला,
सदियों से परिधान यही है।
प्रेम इबादत है,पूजा है,
भक्ति यही,भगवान यही है…॥
प्रेम बगावत करने वाला,
प्रेम का विष भी अमृत प्याला।
सोच-समझ का काम नहीं ये,
करता है इसको दिलवाला॥
विश्वासों का निर्झर है ये,
कहते सब धनवान यही है।
प्रेम इबादत है,पूजा है,
भक्ति यही,भगवान यही है…॥
प्रेम राह है प्रेम आस है,
प्रेम तबाही में उजास है।
प्रेम में तर होता बिस्तर भी,
दुनिया वालों बड़ा खास है॥
ये अन्तर्मन को पिघलाता,
सच्चा ईश्वर ध्यान यही है।
प्रेम इबादत है,पूजा है,
भक्ति यही,भगवान यही है…॥
फकत प्रेम के सागर से घर,
घर कहलाता कोई छप्पर।
प्रेम मांगता नहीं कभी कुछ,
देता ही रहता जीवन भर॥
प्रेमी सिर्फ लुटाने वाला,
होता है,पहिचान यही है।
प्रेम इबादत है,पूजा है,
भक्ति यही,भगवान यही है…॥
जो यतीम है जो आहत है,
प्रेम वहां मरहम,राहत है।
चाहे जितना मन हो बांटो,
दौलत में होती बरकत है॥
‘अनन्त’ दाता बन जाओ तुम,
सच मानो सम्मान यही है।
प्रेम इबादत है,पूजा है,
भक्ति यही,भगवान यही है…॥