कुल पृष्ठ दर्शन : 342

You are currently viewing आदर्श नारी

आदर्श नारी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

***********************************

आज के सन्दर्भ में नारी,
माने पढ़ी-लिखी मॉडर्न अभी,
आदर्श नार्य नित सोच नवल,
अरमान बड़ा नवप्रगति पथी।

उन्मुक्त उड़ानें नभ आतुर,
राष्ट्र नेतृत्व सबला नारी।
तल्लीन क्षेत्र हर जीवन में,
रहती स्वतंत्र सब पर भारी।

पाश्चात्य सोच जीवन भविष्य,
अनुशासन विरत है अब बेटी।
निर्णायक ख़ुद निज भविष्य,
मातु-पिता विरत होती बेटी।

हाँ सोपानों को चढ़ती नित,
अब अंतरिक्ष पहुँची नारी।
नेत्री बन करती नायकत्व,
शिक्षाविद् शिक्षक जग सारी।

अब सबला निर्भीता नारी,
बन उच्च पदों पर अधिकारी।
वैज्ञानिक गायक कवि लेखक,
न्यायाधीश बनी प्रिय नारी।

आत्मनिर्भर नारी गेह शक्ति,
गृहलक्ष्मी ममता नेह वृत्ति।
बेटी बहू बहन मातु सदय,
पर महाशक्ति है अब नारी।

संकोच नार्य का आभूषण,
मृदु भाष मनोहर थी नारी।
आधार सृष्टि पालन भविष्य,
निःस्वार्थ समर्पित थी नारी।

गुण त्याग शील नित सहनशील,
वात्सल्य प्रीति गंभीर धीर।
परिधान सभ्य आकर्षक तनु,
बेटी परकीया थी नारी।

अब पूत तुल्य निर्वाहक बन,
ममता समता संगम नारी।
अब मातु पिता सह सास श्वसुर,
संरक्षक बन सेवाकारी।

पर आज बदली है नारी जग,
बन अर्द्धनग्न दिखती भारी।
संकोच विरत बन लम्पट जग,
अश्लील प्यार कर दिल हारी।

परिणाम विकट दुष्कर्म निरत,
खल कामी फँसती व्यभिचारी।
अंगप्रदर्शन शिक्षा नहीं अर्थ,
कामी शिकार होती नारी।

प्रकृति सिद्ध नर नारी रचना,
मर्यादित सीमा हो नारी।
नित पूज्या देवासुर मानव,
श्रंगार प्रेम ममता धारी।

अब नर नारी जग मिटा भेद,
पर मातु हृदय पायी नारी।
वात्सल्य सुधा रस प्लावित उर,
बस भेद यही जग नर नारी।

सम्मान शान नित नारी जग,
शिक्षा पद गौरव माँ भारी।
हो ऋणी सदा नर दूध अम्ब,
होता सब रिश्तों पर भारी।

कवि भाव नहीं निंदा नारी,
पाश्चात्य प्रभावित परिधानी।
संरक्षित सबला हो निर्भय,
बस ध्येय बने वह अभिमानी।

श्रद्धा लज्जा आदर्श जगत,
ललिता ममता हृदया नारी।
रख लाज स्वयं नारी चरित्र,
नतमस्तक हो दुनिया सारी॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply