राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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सच ही तो कहा गया है कि जुबान में कोई हड्डी नहीं होती,पर यह गलत और अप्रिय बोलने पर आपकी हड्डियां तुड़वा सकती है,एक बात और शब्दों के भी तो अपने ज़ायके होते हैं। परोसने से पहले चख लेने चाहिए चाहिए। चखने में कमी रह जाने से जुबान कड़वी होने के कारण ही भाई-भाई, पति-पत्नी,सास-बहू,देवरानी-जेठानी,ननद- भौजाई,माता-पिता व सन्तान सहित दोस्त-दोस्त में भी मनमुटाव हो जाता है। रिश्तों की अहमियत भुला दी जाती है। पूरे ब्रह्मांड में जुबान ही ऐसी है, जहाँ एक ही समय में अमृत व विष दोनों विद्यमान रहते हैं। कड़वी जुबान क्रोध की जननी है। क्रोध माचिस की तीली की तरह है,पहले खुद जलती है,फिर दूसरों को जलाती है।
यह सही है कि व्यक्ति की वाणी ही उसका पहला परिचय होता है। यदि हम मधुर व हितभरी वाणी बोलेंगें तो दूसरों को सदा आनंद,प्रेम और शांति की अनुभूति होती है। यदि कड़वी वाणी बोलेंगे तो दूसरों को शूल की तरह भेदती है। अगर हम किसी को गुड़ नहीं दे सकते तो गुड़-सी बात तो कर ही सकते हैं। इसलिए कहते हैं कि कठोर वाणी पत्थर से भी ज्यादा तेज़ गति से टकराती है।
मीठी वाणी में भगवान का वास होता है, उससे अपना व दूसरों का कल्याण होता है। असत्य दूर होता है व सत्य की रक्षा होती है। मुख से कभी भी ऐसा शब्द नहीं निकलना चाहिए,जिससे किसी का दिल दुखे और उसका अहित हो। जिसकी जुबान गन्दी होती है,उसका मन भी गन्दा होता है। ऐसे व्यक्ति को समाज में कोई सम्मान नहीं देता है। एक बार पं. मदनमोहन मालवीय से किसी विद्वान ने कहा-‘आप मुझे चाहे सौ गाली दे दीजिए,मुझे गुस्सा नहीं आएगा।’ इस पर मालवीय जी बोले-‘आपके क्रोध की तो बाद में परीक्षा होगी,पहले तो मेरा ही मुँह ही गन्दा हो जाएगा’।
ढंग से कही हुई बात प्रिय और मधुर लगती है। कटु वाणी का प्रयोग इतना भयंकर होता है कि वह मनुष्य के हृदय को छेद देता है।
वाणी में विवेक,मधुरता,अपनत्व और सत्यता का सामंजस्य होने से हमारे जीवन मे दक्षता आती है।
‘तुलसी मीठे वचन से सुख उपजत चहुँ ओर।
वशीकरण एक मंत्र है,तज दे वचन कठोर॥’
परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।