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मधुरभाष जीवन नशा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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नशा सदा नव सीख का,नशा सदा परमार्थ।
मधुर भाष जीवन नशा,नशा कर्म धर्मार्थ॥

नशा नार्य सम्मान हो,नशा भक्ति नित देश।
समरसता मन नशा हो,प्रीति नशा उपवेश॥

मातु पिता सेवन नशा,नशा भक्ति आचार्य।
त्याग शील गुण की नशा,नशा सत्य अनिवार्य॥

सदाचार जीवन नशा, नैतिक जीवन मूल्य।
दान मान परहित नशा,मानव धर्म अतुल्य॥

सर्वोत्तम मानव जनम,स्वार्थ नशा तज लोक।
प्रकृति चारु सुरभित करो,तजो नशा मन शोक॥

करो नशा अरुणाभ जग,नशा प्रगति मुस्कान।
बाँटो खुशियों की नशा,सदभावन सम्मान॥

तजो चाह सत्ता नशा,झूठ कपट पद मोह।
पान नशा कल्याण जग,कीर्ति शिखर आरोह॥

क्रोध लोभ मानस घृणा,हत्या रत दुष्काम।
समझो ये घातक नशा,बनी मौत अविराम।।८।।

साधु समागम कर नशा,विनय नशा कर पान।
निशिवासर सेवा वतन,नशा करो भगवान॥

नशा पान माँ भारती,गाओ भारत गान।
रमो ज्ञान मधुशाल में,शौर्य वीर यश मान॥

वीर-धीर गंभीरता,वसुधा मुदित किसान।
नव शोधन उन्नति वतन,मधुशाला विज्ञान॥

तम्बाकू गांजा चरस,द्रग अफ़ीम ये रोग।
शाराबी कामी नशा,समझ मूल दुर्योग॥

जीवन है दुर्लभ जगत,प्रीति नशा मन घोल।
जी लो तन मन धन वतन,कीर्ति फलक अनमोल॥

हमराही जन-मन वतन,मधुरिम बने ‘निकुंज।’
नशा समादर प्रीति जग,गाएँ समरस गुंज॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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