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महाराणा प्रताप सच्चे श्रावक

श्रीमती अर्चना जैन
दिल्ली(भारत)
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‘महाराणा प्रताप और शौर्य’ स्पर्धा विशेष……….


महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे। सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे,जो अकबर को लगातार मात देते रहे ।
महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ में ९ मई १५४० ईसवीं को हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम महारानी जयवंता बाई और पिता का नाम महाराणा उदयसिंह था। महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच लड़ा गया हल्दी घाटी का युद्ध काफी चर्चित है,क्योंकि अकबर और महाराणा प्रताप के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था।
अकबर से हार कर महाराणा प्रताप जब जंगल में चले गए,तो वीर भामाशाह उन्हें ढूंढते हुए जंगल में पहुंचे। उनसे मिले तो महाराणा प्रताप की आँखों में आँसू गिरने लगे। वीर भामाशाह ने महाराणा प्रताप से जब पूछा कि आप इतने चिंतित क्यों हैं तो महाराणा प्रताप ने कहा कि इस समय खाने का एक कण भी न रहा। बाल-बच्चे भूखे मर रहे हैं। ऐसी हालत में शत्रु से लड़ना भला कैसे बने ? भामाशाह ने कहा,आप इस बात की जरा भी चिंता ना करें और वीर भामाशाह ने सोना,रुपया,जवाहरात से लदी गाड़ियां वहाँ पर लाकर खड़ी कर दी। महाराणा प्रताप चकित होकर बोले भामाशाह आप इतना धन कहां से लाए ? तब भामाशाह ने उत्तर दिया,महाराज यह सब राष्ट्र का धन है,मेरा नहीं है। आप सेना तैयार करें और राज्य को फिर से जीतें। यह सुनकर महाराणा प्रताप की आँखों से प्रेम के आँसू गिरने लगे।
महाराणा प्रताप ने उस समय यह प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक मैं अपना पूरा राज्य न जीत लूंगा,तब तक सोने-चाँदी के थाल में न जीमूंगा। घास के बिछौने पर सोऊंगा और पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा। अंत में भामाशाह की सहायता से महाराणा प्रताप ने अपने राज्य को जीत लिया। भामाशाह भी सच्चे वीर जैन गृहस्थी और सच्चे राष्ट्रभक्त थे। महाराणा प्रताप ने उन्हें रणथम्भौर के प्रसिद्ध दुर्ग का प्रशासक नियुक्त किया था। महाराणा प्रताप ने मेवाड़ देश की स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व त्याग का आदर्श स्थापित किया। महाराणा प्रताप की मृत्यु २६ जनवरी
१५९७ में हुई थी।
आज भी हमें ऐसे महान योद्धा की कमी महसूस होती है। हमें भी महाराणा प्रताप की तरह अपने देश की रक्षा करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। भारत के इतिहास में अपनी अपूर्व देशभक्ति के कारण वीर भामाशाह एवं महाराणा प्रताप अमर हो गए। वे देश और समाज का मस्तक गौरव से ऊंचा कर गए। धन्य है! वह भारत भूमि,जिसने महाराणा प्रताप जैसे नवरत्न पैदा किए।

परिचय-श्रीमती अर्चना जैन का वर्तमान और स्थाई निवास देश की राजधानी और दिल दिल्ली स्थित कृष्णा नगर में है। आप नैतिक शिक्षण की अध्यापिका के रुप में बच्चों को धार्मिक शिक्षा देती हैं। उक्त श्रेष्ठ सेवा कार्य हेतु आपको स्वर्ण पदक(२०१७) सहित अन्य सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। १० अक्टूबर १९७८ को बडौत(जिला बागपत-उप्र)में जन्मी अर्चना जैन को धार्मिक पुस्तकों सहित हिन्दी भाषा लिखने और पढ़ने का खूब शौक है। कार्यक्षेत्र में आप गृहिणी होकर भी सामाजिक कार्यक्रमों में सर्वाधिक सक्रिय रहती हैं। सामाजिक गतिविधि के निमित्त निस्वार्थ भाव से सेवा देना,बच्चों को संस्कार देने हेतु शिविरों में पढ़ाना,पाठशाला लगाना, गरीबों की मदद करना एवं धार्मिक कार्यों में सहयोग तथा परिवारजनों की सेवा करना आपकी खुशी और आपकी खासियत है। इनकी शिक्षा बी.ए. सहित नर्सरी शिक्षक प्रशिक्षण है। आपको भाषा ज्ञान-हिंदी सहित संस्कृत व प्राकृत का है। हाल ही में लेखन शुरू करने वाली अर्चना जैन का विशेष प्रयास-बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए हर सफल प्रयास जारी रखना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार और सभी को संस्कारवान बनाना है। आपकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुन्शी प्रेमचन्द व कबीर दास जी हैं तो प्रेरणापुंज-मित्र अजय जैन ‘विकल्प'(सम्पादक) की प्रेरणा और उत्साहवर्धन है। आपकी विशेषज्ञता-चित्रकला,हस्तकला आदि में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी मातृ भाषा है,हमारे देश के हर कोने में हिन्दी का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। प्रत्येक सरकारी और निजी विद्यालय सहित दफ्तरों, रेलवे स्टेशन,हवाईअड्डा,अस्पतालों आदि सभी कार्य क्षेत्रों में हिन्दी बोली जानी चाहिए और इसे ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

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