कुल पृष्ठ दर्शन : 544

You are currently viewing मनुष्य के पास मानवता नहीं तो,जीवन निरर्थक

मनुष्य के पास मानवता नहीं तो,जीवन निरर्थक

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

***********************************

मानवता मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म होता है। यह हर मनुष्य के लिए ज़रूरी है। अगर कोई मनुष्य दूसरों की सहायता करके मानवता नहीं दिखाएगा तो उस मनुष्य की सहायता भगवान भी नहीं करता है।
जिस मनुष्य के पास मानवता नहीं है,उसका जीवन निरर्थक है। इस धरती पर मनुष्य का जन्म इसलिए हुआ है,क्योंकि वह दुनिया में कुछ ऐसा करके दिखाए,जिससे कई सालों तक दुनिया उसे याद रखे । जैसे-महावीर,बुद्ध,ईसा,नानक,गांधी,मदर टेरेसा आदि।
मानवता शब्द का सरल अर्थ होता है-मानव में मानव के गुण का होना,एकता की भावना का होना। अगर कोई मनुष्य जरुरतमंद लोगों की सहायता करता है,भूखे लोगों को खाना खिलाता है, प्यासे को पानी पिलाता है,तो यह माना जाता है कि वो मनुष्य मानवता का धर्म निभाता है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो समाज में सभी लोगों के साथ मिल-जुलकर रहता है। अगर इस धरती पर मनुष्य मानवता भूल जाएगा तो जीवन जीना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
जिस मनुष्य के अंदर दया और इंसानियत नहीं होती है,उसे कभी इंसान नहीं कह सकते हैं। इस दुनिया में मनुष्य ही एक ऐसा जीव है,जो दूसरों के दुखों को समझ सकता है,और कम कर सकता है। जो अपने जीवन में दूसरों की सहायता करता है, उस मनुष्य के कार्यों को याद रखा जाता है। प्राचीन समय से ही हमें मानव में मानवता की भावना देखने को मिलती है। वास्तव में,मानवता मनुष्य का धर्म होता है।
इंसानियत व मानवता सबसे बड़ा धर्म है। कहते हैं दुनिया में कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो इंसान को गिरा सके। इन्सान को इन्सान द्वारा ही गिराया जाता है। दुनिया में ऐसा नहीं है कि सभी लोग बुरे हैं,इस जगत में अच्छे-बुरे लोगों का संतुलन है। आज संस्कारों का चीरहरण हो रहा है,खूनी रिश्ते खून बहा रहे हैं। संस्कृति का विनाश हो रहा है। दया,धर्म,ईमान का नामो-निशान मिट चुका है। इंसान ख़ुदगर्ज़ बनता जा रहा है। निजी स्वार्थों के लिए कई जघन्य अपराध हो रहे हैं। बुराई का सर्वत्र बोलबाला हो रहा है। आज ईमानदारों को मुख्य धारा से हाशिए पर धकेला जा रहा है। विडम्बना देखिए कि आज इंसान रिश्तों को कलंकित कर रहा है। भाई-भाई के खून का प्यासा है,आज माता- पिता का बंटवारा हो रहा है। बुजुर्ग दाने-दाने का मोहताज है। कलयुगी श्रवणों का बोलबाला है। शायद यह बुज़ुर्गों का दुर्भाग्य है कि जिन बच्चों की ख़ातिर भूखे-प्यासे रहे,पेट काटकर जिन्हें सफलता दिलवाई,आज वही संतानें घातक सिद्व हो रही हैं। वर्तमान परिवेश में ऐसे हालात देखने को मिल रहे हैं। ईश्वर ने संसार में करोड़ों जीव-जन्तु बनाए,पर इंसान सबसे अहम कृति बनाई,लेकिन ईश्वर की यह कृति पथभ्रष्ट हो रही है। आज सड़कों पर आदमी तड़प कर मर रहा है। इंसान पशु से भी बदतर होता जा रहा है,क्योंकि यदि पशु को एक जगह खूंटे से बांध दिया जाए,तो वह अपने-आपको उसी अवस्था में ढाल लेता है,जबकि मानव परिस्थितियों के मुताबिक गिरगिट की तरह रंग बदलता है। आज पैसे का बोलबाला है। ईमानदारी कराह रही है। भाईचारा,सहयोग,मदद एक अंधेरे कमरे में सिमट गए हैं। वर्तमान में अच्छे व संस्कारवान मनुष्य की कोई गिनती नहीं है। झूठों का आदर-सत्कार किया जाता है। आज हंस भीड़ में खोते जा रहे हैं,कौओं को मंच मिल रहा है। आज कतरे भी खुद को दरिया समझने लगे है,लेकिन समुद्र का अपना आस्तित्व है। मानव आज दानव बनता जा रहा है। संवेदनाएं दम तोड़ रही हैं। मानव आज लापरवाही से जंगलों में आग लगा रहा है,उस आग में हजारों जीव-जन्तु जलकर राख हो रहे हैं। जंगली जानवर शहरों की ओर भाग रहे हैं,जबकि सदियां गवाह हैं कि शहरों व आबादी वाले इलाकों में कभी नहीं आते थे,मगर जब मानव ने जानवरों का भोजन खत्म कर दिया। जीव-जन्तुओं को काट खाया तो जंगली जानवर भूख मिटाने के लिए आबादी का ही रूख करेंगें, नरभक्षी बनेगें। आज संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है। आज मानव मशीन बन गया है। अपने ऐशो-आराम में मस्त है,दुनिया से कोई लेना देना नहीं है। संस्कारों का जनाज़ा निकाला जा रहा है। मर्यादाएं भंग हो रही हैं।
वास्तव में मानव सेवा परम धर्म है। आज लोग भूखे-प्यासे मर रहे हैं। भूखमरी इतनी है कि शहरों में आदमी व श्वान लोगों की फेंकी हुई जूठन तक एकसाथ खाते हैं। आज मानव भगवान को न मानकर मानव निर्मित तथाकथित भगवानों को मान रहा है। मानव इतना गिर चुका है कि रिश्ते- नाते भूल चुका है। रिश्तों में संक्रमण बढ़ता जा रहा है। मानव धरती के लिए खून कर रहा है। कई पीढ़ियाँ गुजर गई,मगर आज तक न तो धरती किसी के साथ गई-न जाएगी। फिर यह नफरत व दंगा फसाद क्यों हो रहा है। मानव,मानव से भेदभाव कर रहा है। यह बहुत गहरी खाई है,इसे पाटना सबसे बड़ा धर्म है। आज लोग विलासिता पर हजारों-लाखों रूपए पानी की तरह बहा देते हैं,मगर किसी भूखे को एक रोटी नहीं खिला सकते।
मुंशी प्रेमचन्द ने कहा था कि जहां १०० में से ८०
लोग भूखे मरते हों,वहां शराब पीना गरीबों के खून पीने के बराबर है। भूखे को यदि रोटी दे दी जाए तो भूखे की आत्मा की तृप्ति देखकर जो आनन्द प्राप्त होगा,वह सच्चा सुख है।
आज प्रकृति से छेड़छाड़ हो रही है। प्रकृति के बिना मानव प्रगति नहीं कर सकता। प्रकृति एक ऐसी देवी है जो भेदभाव नहीं करती। प्रत्येक मानव को बराबर धूप व हवा दे रही है। मानव कृतघ्न बनता जा रहा है। नारी पर अत्याचार हो रहा है। मानवीय मूल्यों का पतन होता जा रहा है। नफ़रत को छोड़ देना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य की सहायता करनी चाहिए। भगवान के पास हर चीज़ का लेखा -जोखा है। ईश्वर की चक्की जब चलती है तो वह पाप व पापी को पीस कर रख देती है। इसलिए मानव सेवा ही नारायण सेवा है। यह अटल सत्य है। भगवान व शमशान को हर रोज याद करना चाहिए। किसी को दुखी नहीं करना चाहिए। ईश्वर इस धरा के कण-कण में विद्यमान है। कहा भी तो गया है कि,-
‘अपने लिए,जिए तो क्या जिए,
तू जी,ऐ दिल,ज़माने के लिए।

परहित सरस धरम नहिं भाई,
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।’

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

Leave a Reply