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‘इंसान’ अभी बनना बाकी

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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अभी रंगीन जहाँ सारा,हुआ नहीं रंग खाकी है-
खाली प्याले लिये बैठे,झूमते देखो साकी है।
उड़ा है चाँद सितारों में,लिया है नाप समुंदर को-
मगर इंसान को इंसान,अभी बनना तो बाकी है॥

मुझे बोला मेरा छाया,मैं ऊंचा ठौर मेरा है,
सांझ जीवन या समय की हो,सबको एक दौर घेरा है।
हम अपने समझ ये सपने,हमेशा साँस-साँस बुनते-
साथ परछायी भी छोड़े,बात समय और तेरा है॥

कुछ नींद कुछ यादें बातें कुछ ख्वाब भरी रातें,
कुछ साँस उड़े आँसू फूल लगे काँटे।
मैं भूल जाती हूँ अक्सर इधर-उधर रख कर-
सब बंद रखी अलमीरे दो-चार मुलाकातें॥

किए हरदम मुआफी हम,सारी गुस्ताखियां तेरी,
नजरअंदाज कभी करते,थोड़ी बदमाशियां तेरी।
नजर खामोश दो मासूम जुगनू जब भी चमक उठते-
मैं खुद को भूल जाती हूँ,प्यारी शैतानियां तेरी॥

मोम परत पत्थर दिल मुआमला है क्या,
ये संसार रंजो गम स्कूल दाखिला है क्या।
हम मुसाफिरी तन्हा मन कभी नहीं करते-
साथ में तिरी भी यादों के काफिला है क्या॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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