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जिनका जीवन एक मिशन था

श्रद्धांजलि-स्व. डॉ. नरेन्द्र कोहली

🔳अनिल जोशी(उपाध्यक्ष-केन्द्रीय हिंदी संस्थान,शिक्षा मंत्रालय,भारत सरकार)
anilhindi@gmail.com
नरेंद्र कोहली से मेरा परिचय लगभग ३० वर्ष पुराना और घनिष्ठ है। जब मैंने ‘दीक्षा’ पढ़ा ही था अदुभुत! अविस्मरणीय! जिस देश में रामचरित मानस को गाली देना फैशन बन गया हो,वहां पर रामायण पात्रों में सहृदयता और प्रगतिशीलता भर कोहली जी ने रामकथा को नए स्वर दिए थे। वे सच्चे अर्थों में अमृतलाल नागर के अनुयायी थे। यहां से उनके प्रति मेरा आदर व उनकी तरफ से मेरे प्रति स्नेह का झरना फूटा।उन्होंने ‘अभ्युदय’ पूरा किया और फिर ‘महासमर’ में लग गए। ऐसा लगता है कि ‘अभ्युदय’ लिखते-लिखते वे जीवन का अर्थ समझ गए थे।महासमर तक वे पूरे सिद्ध लेखक बन चुके थे। उनका समर्पण,प्रतिबद्धता और आदर्श अब व्यासकार के पद पर सिद्ध हो गए थे।
महाभारत की टीकाएं पढ़ने के बाद लगता है कि, व्यासकार के पद पर जो गहनता,सिद्ध भाव,तीक्ष्ण दृष्टि उन्हें मिली थी,वह दुर्लभ है।मुझे एक संदर्भ १९९७ के कांस्टीट्युशन क्लब का ध्यान आता है। मैं ‘महासमर’ श्रृंखला की एक पुस्तक ‘प्रच्छन्न’ के लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन कर रहा था,तब अटल जी विपक्ष के नेता थे। ‘प्रछन्न’ में कर्ण के पात्र की अभिव्यक्ति से वे सहमत नहीं थे,परंतु कोहली जी ने लिखा था कि दौप्रदी के चरित्र हनन के समय धृतराष्ट्र के दरबार में कर्ण की जो भूमिका रही है,उसके कारण उन्होंने कर्ण को कभी क्षमा नहीं किया। वे दिनकर जी की ‘रश्मिरथी के प्रभाव से भी प्रभावित नहीं थे। अटल जी ने माना कि,उन्होंने कर्ण के इस रूप पर कभी विचार नहीं किया। उन्होंने कहा मुझे कर्ण के व्यक्तित्व पर पुनर्विचार करना होगा।
महाभारत में युधिष्ठर का चरित्र भी एक ऐसाचरित्र है,जिसका मजाक उड़ाया गया था,परंतु कोहली जी ने उसके साथ भी पूरा न्याय किया।
उनकी अंतिम श्रृंखला ‘तोड़ो कारा तोड़ो’ विवेकानंद के चरित्र पर थी,इस बीच मैं ब्रिटेन में पदस्थ हुआ और वर्ष २००२ में उन्हें त्रिनिडाड और टुबैगो और ब्रिटेन जाना हुआ।वह उनकी पहली विदेश यात्राएं थी और मेरामन थाकि वे ब्रिटेन के इतिहास को खोल कर पढ़ लें, जिससे उनके लेखन की परतों को समझ सकें।भारतीय पुनर्जागरण,बंगाली पुनर्जागरण से जुड़ा है जिसमें राम मोहनराय,भूदेव मुखर्जी,बंकिम चन्द्र आदि की भूमिका हैं,पंरतु उसका सबसे जगमगाता नक्षत्र विवेकानंद हैं।भारत की आत्मा को झकझोरता,कचोटता, कन्याकुमारी के तट से भारत का आह्वान करता।अब तक वे भारतीयता की प्रखरता की अभिव्यक्ति बन गए थे। जैसे वे इसी लिए थे। पुरस्कारों और सम्मानों की भाग-दौड़ से दूर। अपने पात्रों,चरित्रों और अभिव्यक्तियों के लिए जाने जाने वाले।
१९६५-७० से शुरू हुई उनकी यात्रा एक संधान की तरफ पहुँच रही थी। इस यात्रा में उनकी पत्नी श्रीमती मधुरिमा कोहली की जितनी प्रशंसा की जाए,वह कम है। वे उनका संबल थीं।

🔳दयानंद पांडेय-
मिथकीय कथाओं यथा रामायण और महाभारत की कथा को आधुनिक कथा में कहने का जो शऊर ,जो सलीक़ा और संवेदना नरेंद्र कोहली ने हिंदी कथा में) उपस्थित की है,कोई और भला क्या कर पाएगा। विवेकानंद के जीवन पर आधारित उपन्यास ‘तोड़ो कारा तोड़ो’ से हिंदी कथा की ज़मीन में जो तोड़-फोड़ नरेंद्र कोहली ने की, वह अविराम रही। १९८१ में उनसे पहली बार दिल्ली में मिला था। मई की कोई शाम थी। उनका घर था, छोटा-सा फ़्लैट। खूब साफ-सुथरा। मधुरिमा जी ने खूब खिलाया-पिलाया था। दिल्ली में जब उनसे मिलना होता था,तो उन्हें व्यंग्य लेखक के रूप में जानता था। एक साक्षात्कार के सिलसिले में उनसे पहली बार मिला था। दिल्ली के मोतीलाल नेहरू कालेज में पढ़ाते थे तब।
एक दशक बाद जब लखनऊ में मिला तो वह कई सारी काराएं तोड़ते हुए ‘राम कथा’ के लिए परिचित हो गए थे। एक बार वह बताने लगे कि बहुत पहले मैं राम कथा पर लिखना चाहता था। एक बार पिता जी से इस बाबत चर्चा की। तो पिता बोले,अभी मत लिखो। तो नहीं लिखा। पूछा कि क्यों ? तो वह बोले ,राम कथा का मूल ही है,पिता का आदेश मानना। तो नहीं लिखा। फिर बहुत साल बाद एक बार पिता ने पूछा कि क्या हुआ तुम्हारी राम कथा का। तो मैंने उन्हें बताया कि,आपने ही तो मना किया था कि अभी मत लिखो। यह सुन कर पिता जी मुस्कुराए। बोले,अब लिख सकते हो। तो फिर लिखने लगा। यह राम कथा ही आगे चल कर नरेंद्र कोहली की पहचान बन गई। और यही नरेंद्र कोहली आज हमें छोड़ कर विदा हो गए हैं। उम्र हो गई थी जाने की। फिर भी दुःख तो होता ही है।

🔳आरुणि त्रिवेदी(हिंदी प्राध्यापक, हिंदी शिक्षण योजना,राजभाषा विभाग)-
अपने एम.ए. के समय में केवल (एक ही) इनकी प्रेमचंद पर सम्पादन में लिखी पुस्तक पढ़कर मैं अपने विशेष प्रश्न-पत्र में सर्वाधिक अंक लाया था। आधुनिक समय के बहुत अच्छे लेखक और विद्वान थे।
नरेंद्र कोहली का प्रेमचंद के बारे में कहा गया एक कथन बहुत महत्वपूर्ण है-“प्रेमचंद्र के पात्र होरी, सूरदास,तथा निर्मला वे ऋषि हैं जिन्हें राक्षस खा गए हैं और उनकी हड्डियों को देखकर प्रत्येक पाठक के मन का राम पृथ्वी को निशाचर विहीन करने का प्रण लेता है।”
उपर्युक्त पात्रों को अगर प्रेमचंद संघर्ष के बाद जीता हुआ बताते तो हम यह सोचकर संतोष की साँस लेते कि चलो आखिर न्याय की जीत हुई। यह बात हमें अकर्मण्य बना देती, हमारे मन में किसी अन्याय से जी-जान से लड़ने की बात एक क्षण को भी न आती,पर उनकी मृत्यु ने हमें अंदर तक झकझोर दिया। अतः नायक या नायिका की संघर्ष से जूझते हुए मृत्यु दिखाकर वस्तुत: प्रेमचंद हमें किसी अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े होने के लिए उकसाते हैं।

🔳डॉ. प्रवीण शुक्ल(साहित्यकार)-
उनके ७५ वें जन्म दिवस पर दिल्ली के इंदिरा गांधी कला केंद्र में एक वृहद आयोजन हुआ। मैंने उस आयोजन के पश्चात उनके सामने यह प्रस्ताव रखा कि हम अपनी संस्था साहित्य प्रेमी मंडल के माध्यम से आपका एक कार्यक्रम रखना चाहते हैं, जिसका शीर्षक रहेगा ‘नरेंद्र कोहली की रचना प्रक्रिया।’ इतना सुनकर मुस्कुराए,बोले-आ तो जाऊँगा लेकिन कम से कम दो से ढाई घंटे लगातार बोलूँगा। कोई मुझे बीच में नहीं टोकेगा,क्योंकि यह विषय ऐसा है इसमें मेरी भी बेहद रूचि है। फिर मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोले-प्रवीण,तुम कार्यक्रम रख लो मैं अवश्य आऊँगा। हम कार्यक्रम रखने का विचार बना ही रहे थे कि उसके बाद लगातार कोरोना के कारण हालात बिगड़ते रहे। मैंने उनसे फोन पर भी बात की,और याद दिलाया कि इस संदर्भ में कार्यक्रम करना है। बोले जब तुम्हारा मन हो रख लेना,मैं आऊँगा लेकिन सब कुछ बीच में ही रह गया और हिंदी साहित्य का महान लेखक,शब्द का अद्भुत शिल्पी जिन्होंने ‘तोड़ो कारा तोड़ो’, ‘अभ्युदय’, ‘अभिज्ञान’, ‘न भूतो न भविष्यति’ जैसी अनेक कालजयी रचनाओं के साथ अनेक निबंध संग्रह,कहानी संग्रह,व्यंग्य संग्रहों का प्रणयन किया, वह हमें अचानक बीच में छोड़कर चले गए।
आज उनके आकस्मिक निधन पर मन बहुत व्यथित है। दद्दू,आप बहुत जल्दी हमें छोड़ कर चले गए। ऐसा तय नहीं हुआ था। तय तो यह हुआ था कि आप आएंगे और अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में विस्तृत व्याख्यान से हमें आप्लावित करेंगे। हम और पूरा हिंदी समाज हमेशा आपका ऋणी रहेगा। समस्त हिंदी समाज की ओर से आपको विनम्र श्रद्धांजलि। राम जी का सेवक राम जी के चरणों में जाकर बैठ गया है।

🔳उर्मिला सैनी(हिंदी प्राध्यापक, हिंदी शिक्षण योजना,राजभाषा विभाग)-
वाणी प्रकाशन ग्रुप के अभिभावक स्वरूप प्रतिष्ठित लेखक नरेन्द्र कोहली जी को हम सभी की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि। पद्मश्री अलंकृत कालजयी कथाकार एवं मनीषी डॉ. नरेन्द्र कोहली की गणना आधुनिक हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में की जाती है। उनका साहित्य अमर रहेगा। पद्मश्री सम्मान,व्यास सम्मान,शलाका सम्मान,पंडित दीनदयाल उपाध्याय सम्मान,अट्टहास सम्मान से सम्मानित नरेन्द्र कोहली जी ने साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं (उपन्यास,व्यंग्य,नाटक, कहानी) एवं गौण विधाओं (संस्मरण,निबन्ध,पत्र आदि) और आलोचनात्मक साहित्य में अपनी लेखनी चलाई। हिन्दी साहित्य में ‘महाकाव्यात्मक उपन्यास’ की विधा को प्रारम्भ करने का श्रेय नरेन्द्र कोहली को ही जाता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक समाज की समस्याओं एवं उनके समाधान को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना नरेन्द्र कोहली की अनन्यतम विशेषता थी। नरेन्द्र कोहली सांस्कृतिक राष्ट्रवादी साहित्यकार थे,जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय जीवन-शैली एवं दर्शन का सम्यक् परिचय करवाया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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