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मेरी बिटिया

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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लगता है तक़दीर हमारी,रंग में आई है,
बरसों करी प्रतीक्षा,तब ये बिटिया आई है।

महक उठा है आँगन मेरा,महकी हर क्यारी,
चंदा जैसा मुखड़ा इसका,कितनी है प्यारी।
किलकारी ऐसी है जैसे,सुर शहनाई है,
बरसों करी प्रतीक्षा,तब ये बिटिया आई है…॥

रिक्त हृदय भर गया मोद से,सूखे पोखर-सा,
कहा आँसुओं से मैंने क्यों,आया है छुप जा।
घर घर जाकर बाँटी हाथों-हाथ मिठाई है,
बरसों करी प्रतीक्षा,तब ये बिटिया आई है…॥

चौड़ा हुआ गर्व से सीना,पापाजी बन कर,
माँ भी फूली नहीं समाती,बेटी को जन कर।
इतनी खुशी मिली है,आँखें जल भर लाई है,
बरसों करी प्रतीक्षा,तब ये बिटिया आई है…॥

मेरी सोन चिरैया सारे,आँगन डोली है,
तुतली ज़ुबान से जब वो माँ-बाबा बोली है।
लेकर लाख बलाएं हमने,गले लगाई है,
बरसों करी प्रतीक्षा,तब ये बिटिया आई है…॥

पढ़-लिख कर के बेटी मेरा,भी नाम करेगी,
मंगलबुध को छोड़ के सूरज पर पाँव धरेगी।
करेगी जब विज्ञानी लोगों,की अगुवाई है,
बरसों करी प्रतीक्षा,तब ये बिटिया आई है॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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