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माँ

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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भँवर बहुत ही गूढ़ है,
नाव रही है डोल।
ओ माँ शेरा वालिये,
झट दरवाजे खोल॥

विपदा बड़ी विशाल है,
भू है डाँवाडोल।
नयन भर गये नीर से,
माँ दरवाजे खोल॥

बड़ी गहन,माँ देख ले,
‘कोरोना’ की चोट।
सुन माँ सब कहने लगे,
ममता पर है खोट॥

पग-पग पर हैं माँ खड़े,
कोरोना के शूल।
आकर हर विपदा तभी,
समय बने अनुकूल॥

माँ सुन अपने दास के,
हृदय की तू पीर।
तीर चल रहे काल के,
दशा बड़ी गंभीर॥

कब आओगी माँ बता,
कब देखोगी पीर।
देखो मेरे देश की,
दशा गूढ़ गंभीर॥

माँ अब तो तूँ देख ले,
इन नयनों का नीर।
तेरे रहते सह रहा,
मेरा भारत पीर॥

दयावान है माँ बड़ी,
उर में पारा वार।
एक बूँद भी जो मिले,
हो जाये उद्धार॥

पग-पग पर माँ बिछ रहे,
नित विपदा के जाल।
अब आजा ममतामई,
आ विपदा को टाल॥

देख जगत की पीर को,
माँ तू क्यूँ है मौन ?
तुम बिन विपदा जगत की,
हर सकता है कौन ?

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।

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