डॉ. वसुधा कामत
बैलहोंगल(कर्नाटक)
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मेरे पापा सबसे निराले,
मुझे लगे वे बड़े प्यारे
जब-जब मैं हँसती,
तब-तब वे बड़े आनंदित रहते।
जब-जब मैं रोती,
वे भी छिप छिपकर रोते
उन्हें रोते देख मैं चुप हो जाती,
अपने नन्हें करकमलों से
उनके आँसू पोंछ उन्हें चुप कराती।
पापा मेरे रोज मुझे निवाला,
मेरे मुँह में डालते
उनको देख मैं भी,
अपने हाथों से उनके मुँह में
छोटा-सा निवाला भर देती।
दोनों मस्त मजे में खा लेते,
पापा-बेटी का प्यार देख
माँ मेरी कहती,-
मुन्नी सिर्फ आपकी नहीं
अभी मेरा प्यार भी है बाकी।
पापा हँसते कहते-
वो मुन्नी नहीं हमारी,
हमारे भाग्य की है लक्ष्मी।
एक दिन बड़ी हो जाएगी,
बुढ़ापे का सहारा बनेगी
मेरी ऊँगली पकड़,
मेरी लाठी बन जाएगी।
अपने पापा को,
लोरी गाकर सुलवाएगी
अरे! मैं भूल कैसे गया!
ये बड़ी होकर कुछ बन जाएगी।
अपने ससुराल जाकर,
पापा का नाम रोशन करेगी
बेटी मेरी रोज पापा से मिलने आएगी।
थोड़ी शरारतें कर अपने पापा से,
फिर अपने ससुराल जाएगी
पापा हँसते-हँसते,
दिल के गम छिपाते।
अपनी नम आँखों से,
बिटिया को
गेट पर खड़े जाते देखते रहेंगे,
बिटिया काश पलटकर देखेगी!
काश! एक मुस्कान अपनी,
देकर जाएगी…।
मेरे पापा थे बड़े निराले,
वर्तमान में भविष्य के सपने देखते॥
परिचय-डॉ. वसुधा कामत की जन्म तारीख २ अक्टूबर १९७५ एवं स्थान दांडेली है। वर्तमान में कर्नाटक के जिला बेलगाम स्थित बैलहोंगल में आपका बसेरा है। हिंदी,मराठी,कन्नड़ एवं अंग्रेज़ी सहित कोंकणी भाषा का भी ज्ञान रखने वाली डॉ. कामत की पूर्ण शिक्षा-बी.कॉम, कम्प्यूटर (आईटीआई) सहित एम.फिल. एवं पी-एच.डी. है। इनका कार्य क्षेत्र सह शिक्षिका एवं एन.सी.सी. अधिकारी का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत समाज में जारी गतिविधियों में भाग लेना है। इनकी लेखन विधा-कविता,आलेख,लघु कहानी आदि है। प्रकाशन में ‘कुछ पल कान्हा के संग’ है तो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में मुक्त भाव की कई रचनाएँ आ चुकी हैं। डॉ. कामत को भगवान बुध्द फैलोशिप पुरस्कार सहित ज्ञानोदय साहित्य पुरस्कार,रचना प्रतिभा सम्मान,शतकवीर सम्मान तथा काव्य चेतना सम्मान आदि मिल चुके हैं। इनके अनुसार डॉ. सुनील परीट का मार्गदर्शक होना विशेष उपलब्धि है। लेखनी का उद्देश्य-पाठकों को प्रेरणा देना और आत्म संतुष्टि पाना है। हिंदी के कई मंचों पर हिंदी का ही लेखन करने में सक्रिय डॉ. वसुधा कामत के लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-कबीर दास जी एवं मुंशी प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-डॉ. परीट,संत कबीर दास,मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा,तुलसीदास जी एवं अटल जी हैं। आपकी विशेषज्ञता-मुक्त भाव से लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हमें बहुत अभिमान है। हिंदी हमारी जान है। हमारे राष्ट्र को अखंडता में रखना अति आवश्यक है। हिंदी भाषा ही सभी प्रांतों को जोड़ सकती है,क्योंकि यह एकदम सरल भाषा है।