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जीवन को जीतना है

डॉ.शैल चन्द्रा
धमतरी(छत्तीसगढ़)
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क्या हुआ जो घरों में बंद हैं,
होगा आगे आनंद ही आनंद है।

अभी इक्कीस दिन सब्र के साथ रहो घर के अंदर,
नहीं तो महाप्रलय का आएगा समंदर।

बाहर घूमने वालों कुछ दिन खा लो दाल-रोटी,
भीड़ लगाने वालों संभलो,
वरना ‘कोरोना’ नोच लेगा तुम्हारी बोटी-बोटी।

यह वक्त जिंदगी और मौत का छोड़ रही है सवाल,
भीड़ बढ़ाकर मत करो तुम बवाल।

घर में रहकर लगा दो हर द्वार में ताले,
बच जाओगे तुम हो किस्मत वाले।

हर हालत में बाहर न रखना कदम,
वरना निकल जाएगा तुम्हारा दम।

घर में रहकर कोरोना को हराना है,
मौत को मात देकर जीवन को जीतना है॥

परिचय-डॉ.शैल चन्द्रा का जन्म १९६६ में ९ अक्टूम्बर को हुआ है। आपका निवास रावण भाठा नगरी(जिला-धमतरी, छतीसगढ़)में है। शिक्षा-एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. एवं पी-एच.डी.(हिंदी) है।बड़ी उपलब्धि अब तक ५ किताबें प्रकाशित होना है। विभिन्न कहानी-काव्य संग्रह सहित राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.चंद्रा की लघुकथा,कहानी व कविता का निरंतर प्रकाशन हुआ है। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको लघु कथा संग्रह ‘विडम्बना’ तथा ‘घर और घोंसला’ के लिए कादम्बरी सम्मान मिला है तो राष्ट्रीय स्तर की लघुकथा प्रतियोगिता में सर्व प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।सम्प्रति से आप प्राचार्य (शासकीय शाला,जिला धमतरी) पद पर कार्यरत हैं।

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