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मेरा अनुभव-मेरी सीख

वीना सक्सेना
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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बात थोड़ी पुरानी है,मेरे बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो चुके थे,उनकी शिक्षा लगभग पूरी हो चुकी थी…अतः घर- गृहस्थी से मुझे काफी समय मिल जाता था..तो सोचा क्यों ना कुछ इस खाली समय का सदुपयोग किया जाए… कोई एक संस्था ज्वाइन कर ली जाए..। हमारे एक परिचित हैं वे मुझे एक सामाजिक संस्था में ले गए..। संस्था सामाजिक कार्य करती थी,अतः मुझे वहां की एक सक्रिय महिला से मिलवा दिया गया,जो पहले से ही वहां स्थापित थी। उनका स्वभाव अत्यंत मधुर और अपनेपन से भरा हुआ था…। मुझे उनका व्यवहार बहुत अच्छा लगता था,अतः हम साथ-साथ काम करने लगे…। धीरे-धीरे मेहनत और लगनशील स्वभाव के कारण हर दिए गए कार्य को पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ सम्पन्न करने लगी…,इसीलिए लोग मुझे पहचानने भी लगे,थोड़ी-सी प्रसिद्धि भी मिलने लगी। मेरे कार्य से अध्यक्ष व सभी सदस्य भी प्रसन्न रहने लगे। अब मैंने देखा कि ,वह मुझ पर पहले से ज्यादा लाड़ और दुलार जताने लगी थी,जो स्वाभाविक भी था, क्योंकि वह मुझे अपनी शिष्या की तरह और मैं उन्हें अपने गुरु की तरह मानने लगी थी। मैं उन पर बहुत विश्वास भी करने लगी थी, उनकी कही हर बात को आँख बंद के मानती थी,इसलिए वह मुझ पर अपना हक भी समझने लगी थी,परंतु जीवन में किसी भी क्षेत्र में पदार्पण करते समय आपके मार्गदर्शक पर आपकी सफलता या विफलता निर्भर करती है। मैंने महसूस किया कि वे मुझे अब कुछ ज्यादा ही मार्गदर्शन देने लगी थी…उन्हें मेरा लोगों से मिलना-जुलना या बात करना बिल्कुल पसंद नहीं आता था। वह अक्सर मुझसे कहती-उससे मिला करो,इससे मत मिला करो…इस कार्यक्रम में जाया करो, वहां मत जाया करो…। अगर मैं कोई कार्यभार या किसी व्यक्ति से अपनी मर्जी से मिल लेती या कार्य ले लेती,तो वह फोन कर करके मुझे उस कार्य को छोड़ने की जिद करती। वह मुझे छोटी-छोटी बातों पर डपटने लगी थी…,साथ ही उनके व्यवहार में मेरे प्रति चिड़चिड़ापन भी शामिल हो गया था। वह यह बर्दाश्त ही नहीं कर पाती थी कि,मैं कुछ भी अपने मन से करुं…। अब तो सभाओं में दोषारोपण भी उन्होंने शुरू कर दिया था, जबकि उनके अलावा सभी मेरे कार्य और व्यवहार से खुश थे।
कभी-कभी वह सभा में बहुत तनाव की स्थिति निर्मित कर देती थी..मेरी छोटी-छोटी गलतियों को बढ़ा-चढ़ा कर बताती थी। इस कारण मैं बहुत उदास और कभी-कभी भावुक भी हो जाती थी…लेकिन संस्था के अध्यक्ष और वरिष्ठ सदस्य मुझ पर बहुत स्नेह रखते थे। वे सब उनके भी स्वभाव को भली-भांति जानते थे…जब मैं दुखी हो जाती तो वह मुझे स्नेह से समझा देते थे..परंतु मैंने देखा कि मेरे किए गए कार्य में गलतियां भी सार्वजनिक रूप से निकालने लगी थी…और मुझसे कटने भी लगी थी। वह यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी कि उनके अलावा कोई भी महिला उनसे आगे जाए या नाम कमाए…।
मजेदार बात तो यह थी कि जिनसे वह मुझे बात करने से या घर आने-जाने से मना करती ,उनके साथ वे स्वयं बहुत ही घुल-मिलकर मिलती,घर पर भोजन वगैरह पर बुलाती…। उनकी यह बात जब मुझे पता लगी तो बहुत ही बुरा लगा,क्योंकि मैं उन पर बहुत भरोसा कर उनके आदेश अक्षर-अक्षर पालन करती थी…इसलिए अब मैंने धीरे-धीरे उनसे दूरी बना ली और वह संस्था भी छोड़ दूसरी संस्था ज्वाइन कर ली। आज मैं कई संस्थाओं में उच्च पदों पर कार्य कर अपनी सेवाएं दे रही हूँ…परंतु वे अभी भी वही हैं…उसी संस्था में..उसी पद पर…।
यह मेरे जीवन का बहुत गहरा अनुभव था… और सीख भी,परंतु मैं उन्हें अब भी धन्यवाद देती हूँ कि,अगर वह मेरे साथ ऐसा ना करती या मुझे भ्रमित नहीं करती तो मैं भी उनके पीछे-पीछे चलती रहती..और वहीं रह जाती.. ।
मेरा अनुभव यह कहता है कि,जीवन में सही मार्गदर्शक होना बहुत जरूरी है। कभी किसी पर आँख बंद कर भरोसा ना करो…और सीख यह मिली कि,मीठी-मीठी बातों से हमेशा बचकर रहना चाहिए।

परिचय : श्रीमती वीना सक्सेना की पहचान इंदौर से मध्यप्रदेश तक में लेखिका और समाजसेविका की है।जन्मतिथि-२३ अक्टूबर एवं जन्म स्थान-सिकंदराराऊ (उत्तरप्रदेश)है। वर्तमान में इंदौर में ही रहती हैं। आप प्रदेश के अलावा अन्य प्रान्तों में भी २० से अधिक वर्ष से समाजसेवा में सक्रिय हैं। मन के भावों को कलम से अभिव्यक्ति देने में माहिर श्रीमती सक्सेना को कैदी महिलाओं औऱ फुटपाथी बच्चों को संस्कार शिक्षा देने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। आपने कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है।आपकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक़ी हैं। आप अच्छी साहित्यकार के साथ ही विश्वविद्यालय स्तर पर टेनिस टूर्नामेंट में चैम्पियन भी रही हैं। `कायस्थ गौरव` और `कायस्थ प्रतिभा` सम्मान से विशेष रूप से अंलकृत श्रीमती सक्सेना के कार्यक्रम आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी प्रसारित हुए हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख प्रकाशित हो चुके हैंL आपका कार्यक्षेत्र-समाजसेवा है तथा सामजिक गतिविधि के तहत महिला समाज की कई इकाइयों में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैंL उत्कृष्ट मंच संचालक होने के साथ ही बीएसएनएल, महिला उत्पीड़न समिति की सदस्य भी हैंL आपकी लेखन विधा खास तौर से लघुकथा हैL आपकी लेखनी का उद्देश्य-मन के भावों को अभिव्यक्ति देना हैL

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