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मेरे पिता

अनशिका गणनायक
कटक(ओडिशा)
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घर में होते हैं वो इंसान,
कहते हैं पापा उन्हें
बरगद की गहरी छाँव है,
मेरे पिता।

जिंदगी के शरीर पे,
घने साए जैसे
मेरे पिता,
सबकी खुशियों का ध्यान रखते
परिवार के लिए समर्पित होते,
मेरे पिता।

दर्द को जाते हैं छिपा,
आँसू को भी छिपाते
मेरे पिता,
बड़ों की सेवा,भाई-बहन को
प्यार
पत्नी को स्नेह,बच्चों को दुलार,
देते मेरे पिता।

बेटी को शहजादी,
बेटे को राजकुमार
बनाकर रखते,
मेरे पिता
परिवार की हिम्मत और विश्वास है,
उम्मीद और आशा की किरण
मेरे पिता।

नहीं हैं वो ईश्वर,
पर उससे कम भी नहीं
अनहोनी को होनी करते,
क्योंकि
साकार हैं आप निराकार नहीं,
पर जो भी हैं
सिर्फ मेरे हैं
मेरे ही तो जनक हैं आप,
दुःख की भीड़ में
हँसना सिखाते,
मेरे पिता।

आप कवि हैं तो,
मैं आपकी कविता।
आपको किसका डर है!
मेरे गर्व तुम्हारा ही गौरव है
मेरे पिता॥

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