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नर से नारायण बना देती है…एक बूंद

कुँवर बेचैन सदाबहार
प्रतापगढ़ (राजस्थान)
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चारों तीर्थ एक बार,
रक्तदान बारम्बारl
बात हो एक धुन की,
और जुनून की
काम आए हर बूंद,
किसी के खून कीl
मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता,
रक्तदाता से बड़ा कोई दानी नहीं होता
अपना रक्त किसी की जान बचाता,
दिया रक्त शरीर में वापस बन जाता
आपको बेशकीमती दुआ दे जाताl
एक बूंद नर से नारायण बना देती है,
और किसी की जिंदगी संवर जाती है
रक्तदान को एक जूनून बनाओ,
हर जरूरतमंद को खून पहुंचाओl
तीन माह में रक्त देने से,
शरीर तंदरुस्त होगा
शरीर में खून तेजी से बढ़ेगा,
और तेजी से रक्त संचार होगाl
मेरी बात को गौर से मानो,
रक्त देने से कोई कमजोर
नहीं होता,बस इतना जानो,
मानव धर्म को पहचानोl
अपना रक्त देने की ठानो,
गभर्वती महिला या हो दुर्घटना
लो संज्ञान ओर करो देर नाl
हूई गम्भीर बीमारी या,
जिससे जिन्दगी हारी
हो कोई कमजोर नारीl
मत देखो उनके जाने का वक्त,
बचा लो उन्हें देकर अपना रक्तl
है जब कोई घर शोषित,
बाल हुआ कोई कुपोषित
आँखों में है जिसके नमी,
और शरीर में खून की कमी
उन्हें अपना खून देकर,
सबके चेहरे पर मुस्कान लाओ
और लाखों पुण्य के फल पाओl
बस इस संदेश को फैलाओ,

रक्तदान करने सब आगे आओll

परिचय-कुँवर प्रताप सिंह का साहित्यिक उपनाम `कुंवर बेचैन` हैl आपकी जन्म तारीख २९ जून १९८६ तथा जन्म स्थान-मंदसौर हैl नीमच रोड (प्रतापगढ़, राजस्थान) में स्थाई रूप से बसे हुए श्री सिंह को हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। राजस्थान वासी कुँवर प्रताप ने एम.ए.(हिन्दी)एवं बी.एड. की शिक्षा हासिल की है। निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्यक्षेत्र अपनाए हुए श्री सिंह सामाजिक गतिविधि में ‘बेटी पढ़ाओ और आगे बढ़ाओ’ के साथ ‘बेटे को भी संस्कारी बनाओ और देश बचाओ’ मुहिम पर कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-शायरी,ग़ज़ल,कविता और कहानी इत्यादि है। स्थानीय और प्रदेश स्तर की साप्ताहिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में स्थानीय साहित्य परिषद एवं जिलाधीश द्वारा सम्मानित हुए हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-शब्दों से लोगों को वो दिखाने का प्रयास,जो सामान्य आँखों से देख नहीं पाते हैं। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,हरिशकंर परसाई हैं,तो प्रेरणापुंज-जिनसे जो कुछ भी सीखा है वो सब प्रेरणीय हैं। विशेषज्ञता-शब्द बाण हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी केवल भाषा ही नहीं,अपितु हमारे राष्ट्र का गौरव है। हमारी संस्कृति व सभ्यताएं भी हिंदी में परिभाषित है। इसे जागृत और विस्तारित करना हम सबका कर्त्तव्य है। हिंदी का प्रयोग हमारे लिए गौरव का विषय है,जो व्यक्ति अपने दैनिक आचार-व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करते हैं,वह निश्चित रूप से विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहरा रहे हैं।”

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