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देवभूमि को सुरक्षित रखना जरूरत

प्रियंका सौरभ
हिसार(हरियाणा)

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उत्तराखंड हिमालय देवभूमि के रूप में उभरा है और हिंदू तीर्थयात्रा के केन्द्र के रुप में विकसित हुआ है,मगर प्राकृतिक आपदाएं इसको विनाशक बना रही है। पिछले एक दशक में हाल की पारिस्थितिक नाजुकताओं को देखते हुए लोगों की सुरक्षा के साथ-साथ धरोहर स्थलों को सुरक्षित रखने के लिए दीर्घकालिक संकट प्रतिक्रिया तंत्र और समाधान करना समय की जरूरत है।
उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमखण्ड के फटने के बाद बाढ़ की वजह से वैज्ञानिक समुदाय अब भी यह समझने के लिए संघर्ष कर रहा है कि,ये आपदा किस वजह से हुई। इसका उत्तर इतिहास के साथ-साथ वर्तमान विकास संबंधी मुद्दों पर भी है,हम इस बात से मना नहीं कर सकते।
पुरातात्विक रिकॉर्ड और अभिलेखीय साक्ष्यों के अध्ययन से पता चलता है कि विभिन्न कारकों और प्रक्रियाओं ने धीरे-धीरे देव भूमि को एक पवित्र परिदृश्य में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिमालय की तलहटी में पाए जाने वाले आर्टिफैक्ट्स,जो ३०० ईसा पूर्व और ६०० सीई तक फैली अवधि के हैं,गंगा के मैदानों और तलहटी में रहने वाले समुदायों के बीच गहरे संपर्क का संकेत देते हैं।
उत्तराखंड नए और अस्थिर पहाड़ों के बीच स्थित है,और तीव्र वर्षा के अधीन है। २०१३ में केदारनाथ में बाढ़ बताती है कि,भगवान के नाम पर हाथों से किया गया विकास एक भयानक दृश्य ला सकता है। वर्षों से भू-वैज्ञानिकों,ग्लेशियोलॉजिस्ट और जलवायु विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन,तीव्र और अंधाधुंध निर्माण गतिविधियों और क्षेत्र में बाद के पारिस्थितिक विनाश के कारण आपदा के बारे में अपने डर को आवाज दी है। विशेषज्ञों ने संभावित दबाव के रूप में बड़े पैमाने पर मानव बस्तियों और कृषि गतिविधियों के विस्तार के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई के लिए इसे पहचाना।
हिंदू कुश हिमालय मूल्यांकन प्रतिवेदन (२०१९) में बताया गया था कि हिंदू कुश हिमालय के हिमखण्ड का एक तिहाई हिस्सा पेरिस समझौते के तहत सभी प्रतिबद्धताओं के पूरा होने पर भी २१०० तक पिघल जाएगा। यह भी चेतावनी दी है कि किसी भी पारिस्थितिक विनाशकारी गतिविधियों से भू-स्खलन जैसी अधिक तीव्रता वाली आपदाएं हो सकती हैं। विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने लगातार उत्तराखंड में पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण में छानबीन के लिए कहा है।
अब समय की जरूरत है दीर्घकालिक संकट प्रतिक्रिया तंत्र और लचीले समाधानों में निवेश करना ही होगा। कुछ तात्कालिक लचीलेपन की योजना में विशेष रूप से बाढ़ की रोकथाम और सड़क स्थिरीकरण तकनीकों को लागू करने और पुलों-पुलियों और सुरंगों जैसी मौजूदा संरचनाओं को मजबूत करने,पर्याप्त वैज्ञानिक जानकारियों के साथ तटबंधों को मजबूत करना,जल विद्युत और अन्य सार्वजनिक अवसंरचना का पुन: विकास करना,एक मजबूत निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली में निवेश करना अत्यंत जरूरी है। भारत को उत्तराखंड के लिए एक लचीले भविष्य को बहाल करने और पुनर्निर्माण करने की सख्त जरूरत है।

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