शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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हे मात भारती करूँ शत्-शत् तुम्हें प्रणाम,
खेला हूँ तेरी गोद में आँचल को तेरे थाम।
माँ तेरे प्यार का कोई भी मोल नहीं है,
मेरे लिए तो पूज्य है सारी ये धरा धाम।
पावन है तेरी मिट्टी जो कान्हा ने खाई थी,
मुँह में दिखाया माँ को ब्रह्माँड ही तमाम।
उस मिट्टी को ही खाकर के मैं बड़ा हुआ,
इसमें ही होगी आखिर जीवन की मेरे शाम।
आयी जो आँच जान पर मैं खेल जाऊँगा,
लिख दी है अपनी जिंदगी मैंने तुम्हारे नाम।
बेटा हूँ माँ तुम्हारा हूँ आशीष का हकदार,
सिर पे सदा हो हाथ न आये दुखों की घाम।
जब तक जिऊँगा दुश्मन आने न पाएगा,
आया जो सामने करेगा कब्र में आराम।
आए बहुत से आतताई सब चले गये,
कई हो गए दफ़न इसी मिट्टी में दिल को थाम।
माँ भारती का रक्खा मैंने सदा ही मान,
ऊँची सदा ही रक्खी है अपने वतन की शान।
लहराता रहे शान से तिरंगा आसमान ,
करता हूँ नमन तुमको ऐ प्यारे हिन्दुस्तान।
तू मेरा प्यार है हमेशा तुझपे सब कुर्बान,
दे सकता हूँ हँसते हुए तुम पर मैं अपनी जान॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।