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सुदृढ़ बंधन राखी के दो तार

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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रक्षाबंधन पर्व विशेष………..

सबसे सुदृढ़ बंधन है ये राखी के दो तार,
इन तारों में बँधा हुआ है बहन-भाई का प्यार।
अपनी हमसाया से बँध गई मेरी प्रीत की डोरी,
सात जन्म के रिश्तों खातिर मेरी हो गई गोरी।
एक अनूठा बंधन होता माँ-बापू का प्यार,
मेरा जीवन मेरी दुनिया जीने का आधार।

जुड़ा हुआ है ईश्वर से मेरे साँसों का बंधन,
उनके चरणों मैं करता हूँ नित-नित सौ-सौ वंदन।

मुश्किल से जो मिलते हैं उन मित्रों का अभिनंदन,
कृष्ण सुदामा की यारी का कैसा पावन बंधन।
ऐसी बाँधो प्रीत की डोरी टूटे न जीवनभर,
जैसे मीरा श्याम दिवानी औ राधा के गिरधर।

बहन-भाई का प्यारा बंधन टूट कभी ना पाए,
रेशम के डोरी का बंधन खींच के उसको लाए।

लाड़ करे भाई का बहना लगे जान से प्यारा,
माँ-बापू का जीवन है बहना का राजदुलारा।

चौकी पर बैठा माथे पर चंदन तिलक लगाएगी,
बांध कलाई राखी बहना गले लगा दुलराएगी।
इससे प्यारा नाता कोई होता नहीं जहान में,
शायद ईश्वर ने लिखा हो अपने किसी विधान में॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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