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वो तो माँ है हमारी

अनूप कुमार श्रीवास्तव
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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जिसके पाँवों तले है जन्नत बसी,
वो तो माँ है हमारी हर इक खुशी।

वो इबादत भी है औ पूजा भी है,
वो तो माँ प्यारी सी है साँसें सभी।

इन रगों में बहे लहू उसका ही कहीं,
इन आँखों में है रौशनी भी उसी की।

किस तरह पाला-पोसा सब मैं जानता,
दिन उठे जग गई रात ढली कब सो गई।

सजी जिसके जलवों से कायनात भी,
सारे मज़हबों में मुकद्दस तस्वीर-सी।

आरती अजान अरदास में कहीं,
वो तो माँ है काबा-काशी वहीं।

मेरे अधरों पर बोली उसी की कहीं,
वो तो माँ है हमारी फिक्र भी कहीं।

तीज-त्यौहार है आतिथि सत्कार है,
इस प्रकृति को अनमोल उपहार है।

वो विधाता हमारी,संस्कार कहीं,
वो तो माँ है हमारी श्रृंगार कहीं।

मन मुस्कुराता रहा तन इतराता रहा,
वो तो माँ हमारी संग में रही देवदार-सी।

धूप की आँच में झुलसें जो पथ में कहीं,
वो तो माँ है हमारी छाँव नीम की कहीं।

जिसके पाँवों पे चंदन माथे पे तिलक,
अर्चना से जिसकी है पूरी मन्नत सभी।

मेरी हस्ती है क्या अब क्या लिख सकूं,
लफ्ज कम है ‘अनूप’ आसमां टुकड़ा कहीं॥

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