तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान)
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महिला दिवस स्पर्धा विशेष……
औरत का दर्द
न औरत समझे,
पुरुष भला क्या
समझेगा ?
औरत ने
औरत को सताया,
ताने मारे
दिल को दुखाया।
बन कर सास
बहू को जलाया,
कन्या भ्रूण
गर्भ में मिटाया।
सम्मान सास को
बहू न देती,
झूठन अपना
उसे खिलाती।
सेवा भाव का
अभाव है देखा,
वृद्धाश्रम का
द्वार दिखाती।
मेमसाब की
बात न पूछो,
नौकरानी पर
हुक़्म चलाती,
हस्ती तेरी
कुछ भी नहीं,
बार-बार
अहसास कराती।
मंथरा ने
कैकेयी को भरमाया,
सिया-राम को
वन भिजवाया,
शक-संशय का
बीज उगाया।
औरत पर
घर-बार है निर्भर,
चाहे घर में
स्वर्ग ले आए,
चाहे तो
घर नर्क बना दे।
रिश्तों की मर्यादा
जो समझे,
समझ ले जो
अपनों की क़ीमत।
कोई औरत
करे न ज़ुल्म और,
कोई औरत
सहे न ज़िल्लत।
दुनिया फिर
बन जाए जन्नत॥
परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।