कुल पृष्ठ दर्शन : 240

पाक व अमेरिका:दुश्मनी के डमरु

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
**********************************************************************

गलवान घाटी को लेकर चल रहे भारत-चीन तनाव पर २ संवाद अभी-अभी ऐसे हुए हैं,जिन पर विदेश नीति विशेषज्ञों का ध्यान जाना जरुरी है। एक तो अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियों और भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर के बीच,एवं दूसरा चीनी विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के बीच! कुरैशी उनके स्वास्थ्य-सुधार के लिए शुभकामना,क्योंकि जिस दिन उन्होंने चीनी नेता से बात की,उन्हें कोरोना हो गया। यह कितना मजेदार तथ्य है कि अमेरिका और पाकिस्तान,दोनों का रवैया एक-जैसा है। दोनों के विदेश मंत्रियों के बयान एक-जैसे हैं। भारत-चीन संबंधों पर दुनिया के लगभग २०० देश अपने मुँह पर पट्टी बांधे हुए हैं,या शांति की फुसफुसाहट कर रहे हैं,सिर्फ अमेरिका और पाकिस्तान ही ऐसे देश हैं,जो दुश्मनी के डमरु बजा रहे हैं। अमेरिका,भारत से कह रहा है कि चीन विस्तारवादी है,झगड़ेबाज है,कब्जाबाज है,हिंसक है। उसके सामने डटे रहो। हम अपनी फौजें यूरोप से हटा रहे हैं(जरुरत पड़ी तो उन्हें आपकी सेवा में भी लगा देंगे)l उधर,पाकिस्तान तालियां बजा रहा है और थालियां पीट रहा है। वह चीन को बधाई दे रहा है कि उसने फौजी विस्तारवाद को पीछे धकेल दिया। चीन हर हाल में पाकिस्तान का दोस्त रहा है,और पाकिस्तान अब भी हर मुद्दे पर चीन के साथ है। वह ‘एक चीन नीति’ को मानता है। वह हांगकांग,ताइवान,तिब्बत और सिंक्यांग के सवाल पर भी चीन के साथ है। क्या कश्मीर पर चीन पूरी तरह पाकिस्तान के साथ है ? पाकिस्तान को चीन के आगे इतना ज्यादा पसरने की जरुरत क्या है ? पाकिस्तान के समर्थन से चीन को क्या फायदा है ? क्या चीन की खातिर पाकिस्तान,भारत के खिलाफ युद्ध का दूसरा मोर्चा खोलना चाहेगा ? वह क्यों घर बैठे मुसीबत मोल लेना चाहेगा ? कुरैशी को क्या पता नहीं कि,सिंक्यांग में मुसलमानों की कितनी दुर्दशा है ? १० लाख उइगर चीनी-शिविरों में कैद हैं। पाकिस्तान यह अच्छी तरह समझ ले कि उसे अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी। चीन सिर्फ जबानी जमा-खर्च करता रहेगा। इसी तरह भारत को भी समझ लेना चाहिए कि,अमेरिका इसलिए भारत की पीठ ठोक रहा है कि आजकल चीन से उसकी ठनी हुई है। भारत और पाकिस्तान-जैसे देशों के नीति-निर्माताओं को यह बताने की जरुरत नहीं है कि ये महाशक्तियां अपने स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए ही आपकी पीठ ठोकती हैं। इनके दम पर हद से ज्यादा उचकना ठीक नहीं है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply