डोमन निषाद
बेमेतरा(छत्तीसगढ़)
************************************************************
घाटी पर्वत मेरा गृह बसेरा,
यही है मेरा संसार और डेरा।
जहाँ मन करे,वहाँ चला जाता हूँ,
संर्घष भरा जीवन बिताया करता हूँ।
अजीब हैं दुनिया वाले अनजान समझते हैं,
मगर कैसे बताऊं,जो हमें बेजुबान बोलते हैं।
न हमारी कोई भाषा है,न कोई बोली,
न हमारी कोई ईशा है,न कोई टोली।
प्रकृति से घनिष्ठ सम्बन्ध हमारा,
दुःख हो या सुःख से,ये निबंध हमारा।
हूँ परिन्दा,मगर न करो हमारी निंदा,
हूँ परिन्दा,मगर मत करो हमारी हिंसा।
(इक दृष्टि यहाँ भी:ईशा=अधिकार,निबंध= बंधी हुई)